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apj abdul kalam death date
नव विचार, भारत और कलाम

नव विचार, भारत और कलाम

“जिस दिन हमारे signature ऑटोग्राफ में बदल जाये , उस दिन मान लीजिये आप कामयाब हो गए”

ऐसी ही ऊंची सोच रखने वाले ‘मिसाइलमैन’ अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम (एपीजे अब्दुल कलाम) भारतीय मिसाइल प्रोग्राम के जनक कहे जाते हैं। जब कलाम जी ने 2002 से 2007 तक देश का सर्वोच्च पद यानि भारत के 11 वें राष्ट्रपति की शपथ ली थी तो देश के हर वैज्ञानिक का सर फख्र से ऊंचा हो गया था। वे ‘मिसाइलमैन’ और ‘जनता के राष्ट्रपति’ के रूप में लोकप्रिय हुए ,और ऐसे ही महापुरुष का आज ही के दिन निधन हुआ था, तो चलिए आज इनके पुण्यतिथि के अवसर पर इस पोस्ट के माध्यम से हम इस website को लॉन्च करते है जिसका नाम है “The Next Big Idea” और फिर से इस महान हस्ती की यादों को ताजा करते हैं ताकि इनकी नेकिया, इनके विचार और इनके आदर्शों को हम अपने जहन में जिन्दा रख सके |

कलाम जी के जीवन का सफर / कलाम जी का बचपन :- वैसे तो आपने कामयाबी की बहुत सी कहानिया पढ़ी होंगी लेकिन ऐसी ही जीती – जागती कहानियों का हिस्सा है हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, अगर आप आसमान की उचाईयों को छूना है तो हवाई जहाज और अन्य साधनों से भी जरूरी चीज है हौसला जो कि आपको कामयाबी कि शिखर तक पहुँचाती है | भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जिन्हें दुनिया ‘मिसाइलमैन’ के नाम से भी जानती है, इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम् (तमिलनाडु) में हुआ था। एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम डॉक्टर अबुल पाकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम था।

उनका परिवार छोटी-बड़ी मुश्किलों से हमेशा ही जूझता रहता था। उन्हें बचपन में ही अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया था। उस वक्त उनके घर में बिजली नहीं हुआ करती थी और वे केरोसिन तेल का दीपक जलाकर पढ़ाई किया करते थे।
अब्दुल कलाम मदरसे में पढ़ने के बाद सुबह रामेश्वरम् के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर जाकर समाचार पत्र एकत्र करते थे। अब्दुल कलाम अखबार लेने के बाद रामेश्वरम् शहर की सड़कों पर दौड़-दौड़कर सबसे पहले उसका वितरण करते थे। बचपन में ही आत्मनिर्भर बनने की तरफ उनका यह पहला कदम रहा।

कलाम की शिक्षा : कलाम जब मात्र 19 वर्ष के थे, तब द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका को भी उन्होंने महसूस किया। युद्ध की आग रामेश्वरम् के द्वार तक पहुंच गई थी | कलाम एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आए, तो इसके पीछे उनके 5वीं कक्षा के अध्यापक सुब्रह्मण्यम अय्यर की प्रेरणा जरूर थी।अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया। वहां इन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अध्ययन किया।

मिसाइल क्रांति की तरफ कदम :- 1962 में वे ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ में आए। डॉक्टर अब्दुल कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एसएलवी तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है। 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गये।इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया। इन्होंनेअग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे| उन्होंने रणनीतिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का उपयोग आग्नेयास्त्रोंके रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया। इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की। कलाम ने भारत के विकासस्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की |

राष्ट्रपति का सफर : 18 जुलाई 2002 को कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया था। 25 जुलाई 2002 को उन्होंने संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था।

ऐसे भारतीय मिसाइल प्रोग्राम के जनक और जनता के राष्ट्रपति के रूप में लोकप्रिय हुए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में एक व्याख्यान देने के दौरान गिरने के बाद निधन हो गया।

“शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्य को आकार देता हैं। अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होगा”।

Dulari devi madhubani paintings
संघर्ष की मिसाल हैं दुलारी देवी (dulari devi)
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके लिए शस्य श्यामला धरती पालने का काम करती है, गांव की पगडंडियाँ जिनको ऊँगली पकड़कर चलना सिखाती है, पेड़-पौधे, नदी-तालाब और पशु-पक्षी चीजें निर्भय होकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं | अनुभव के विश्वविद्यालय में ऐसे लोग जो डिग्री हासिल करते हैं, उनके समक्ष विश्वविद्यालय की ऊंची से ऊंची डिग्री भी फीकी पड़ जाती है | ऐसे ही लोगों में दुलारी देवी भी एक हैं, जिन्होंने तमाम प्रतिकूलताओ के बावजूद लगन परिश्रम और संकल्प शक्ति के बल पर मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में एक विशिष्ट मुकाम हासिल किया है | वे हमारे बीच मिथिला पेंटिंग के शीर्षस्थ कलाकारों की पंक्ति में श्रद्धा एवं आदर के पात्र हैं |

दुलारी देवी ( Dulari Devi ) का जन्म बिहार के मधुबनी जिला अंतर्गत रॉटी ग्राम के एक मछुआरा परिवार में २७ दिसंबर १९६७ को हुआ था | दुलारी के पिता मुसहर मुखिया और भाई परीक्षण मुखिया मछली पकड़ने का परंपरागत काम करते थे | जबकि मां धनेश्वरी देवी दूसरे के घरों में खेत खलियान में मजदूरी करती थी |होश सँभालते ही दुलारी को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ी | कभी पिता और भाई के साथ मछलियां पकड़ने जाती तो कभी माँ के साथ दूसरे के घरों और खेतों में मजदूरी करती | फिर भी शायद ही किसी दिन भरपेट भोजन हो पता था | दूसरे दिन क्या खाएंगे, इसी चिंता में रात गुजरती थी | उन दिनों के बारे में दुलारी कहती हैं, “बचपन का दिन बड़ा हे मुस्किलो भरा था | फूस का घर था | सुबह और शाम में माँ के साथ लोगो के घरो में झाड़ू-पोछा और दिन में खेतो में मजदूरी किया करती थी | धान कटनी के दिनों में दूसरे के घर धान कूटने भी जाना पड़ता था | तब २० किलो धान कूटने पर आधा किलो धान मजदूरी के रूप में मिलता था | लेकिन इतने कठिन परिश्रम के बाउजूद भी कभी-कभार भूखे पेट ही सोना पड़ता था |”

जैसे की उन दिनों प्रचलन था, ११२ वर्ष की उम्र में ही दुलारी की शादी मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड के बलाइन कुसमौल गाँव में हो गई | लेकिन दुलारी का दामपत्ये जीवन सुखद नहीं रहा | पति से अनबन चलता रहा | उनकी ६ माह की पुत्री भी अचानक चल बसी | तब दुलारी मायके लौट आई और फिर वही की होकर रह गई | मायके में मिथला पेंटिंग की सुप्रसिद्ध कलाकार महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी के यहाँ दुलारी को ६ रु महीना पर झाड़ू-पोछा का काम मिला | वह आँगन-बरामदा झाड़ू से रगड़-रगड़ के चमकाती | चूल्हे-चौके से लेकर उनके घर का हर छोटा-बड़ा काम दुलारी करती | काम के बाद जब समय मिलता, तब महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी को पेंटिंग बनाते ध्यान से देखा करती | उन्हें देख दुलारी के मन में भी पेंटिंग बनाने की लालसा जगी | लकिन दिनों पिछड़ी जातियों में मिथला पेंटिंग बनाने का रिवाज नहीं था |इसलिए लोकलाज के डर से वह अपने मन की बात कह नहीं पाती थी | कागज और कुची खरीदने के लिए भी दुलारी के पास पैसे नहीं थे | पढ़ी-लिखी भी नहीं थी | कभीं कलम और पेंसिल नहीं पकड़ा था | लेकिन उसमे मिथिला पेंटिंग को जानने-समझने की उददाम उत्सुकता थी | इसलिए तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद उन्होंने मिथला पेंटिंग सीखने का निर्णय लिया | शाम में घर लौटने के बाद अपनी जमीं को पानी से गिला कर लकड़ी के टुकड़े से पेंटिंग बनती | यह कर्म कई महीनो तक चलता रहा |

संयोगवश, उन्ही दिनों भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा महासुंदरी के आवास पर मिथिला पेंटिंग में ६ माह का प्रशिक्षण शुरू किया गया | महासुंदरी देवी की पहल से दुलारी को भी प्रशिक्षण में शामिल कर लिया गया | उन्होंने अपने सान्निध्य में दुलारी को सीखना सुरु कर दिया | फिर तोह दुलारी की कल्पनाएं कुलचे भरने लगी | वो सोते-जागते मिथिला पेंटिंग की स्वप्निल दुनिया में गोते लगाने लगी | उसके कौशल को राह और मजिल मिलती चली गई | इस प्रशिक्षण के दौरान उसे मिथिला पेंटिंग की बारीकियों को जानने समझने का पर्याप्त अवसर मिला | दरअसल दुलारी के मन में कहीं न कहीं यह डर समाया हुआ था कि कहीं कोई यह न कहे कि छोटे और गरीब घरो से आए लोग मिथिला पेंटिंग में काबिल नहीं होते इसलिए अपने आप को साबित करने की चाहत में वह प्रशिक्षण के बाद भी घंटो पेंटिंग बनाती | घर में बिजली नहीं थी | फिर भी अंधेरे कमरे में तेल की कुप्पी की रोशनी में वह आर्थिक कठिनाइयों और तमाम परेशानियों के बीच चित्रण करती रही | दुलारी का मेहनत रंग लाया और मिथिला पेंटिंग की तत्कालीन दुनिया में भली-भांति परिचित हो गई फिर दुलारी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा |

उस समय तक उच्च जाति की महिलाएं ज्यादातर पौराणिक कथा रामायण और महाभारत तथा दलित महिलाएं राजा सहलेस से जुड़े प्रसंगों को ही अपने चित्रों में उकेरती थी | लेकिन दुलारी ने परम्परा से चले आ रहे उन चित्रों को नहीं अपनाया | उन्होंने अपने चित्रों में नए भाव के सात विषयों के चुनाव में नवीनता लाई | वह बचपन से ही प्रकृति के संग जीने की आदी थी | इसलिए ग्राम में झांकियां और मधुर स्वप्न जो उनके भीतर बचपन से संचित होते गये थे, वे उनके रंगों और रेखाओं में बिखर गये | सबसे पहले उन्होंने मछुआरों के जीवन पर पेंटिंग बनाई | मल्लाह जाति के लोग, उनके संस्कार और उनके उत्सवों को अपना विषय बनाया | फिर खेतों में काम करते किसानों और मजदूरों का चित्रण किया बाढ़-सुखाड़ के दौरान गरीबों की तकलीफों और दुखड़ो को चित्रभाषा दी | इस तरह घरेलू दुख दर्द की अबूझ समझ और प्रकृति से आत्मीय लगाव के चलते तालाब, गवांई-गाँव और सैम-सामयिक विषयों का चित्र दुलारी ने एक नया आकर्षण पैदा कर दिया | मिथिला चित्रकला के कलाकारों की दुलारी देवी की एक अलग ही पहचान बनती गई |

दुलारी देवी ( Dulari Devi ) को मिथिला पेंटिंग की कचनी शैली (रेखा चित्र) में महारथ हासिल है | उनकी कचनी शैली के चित्रों की आपने कुछ विशेष खूबिया हैं | उनके चित्रों की रेखाएं और अपने ढंग की होती है और रंग संयोजन बहुत ही उच्च कोटि का होता है | पतली लकीरों से चित्रों को आकार देकर रंगो का जिस कुशलता से वह सम्मिश्रण करती हैं, वह सर्वथा मौलिक होता है | उनके चित्रों में नए भावों के साथ विषयों के चुनाव में भी नवीनता है | उन्होंने ऐसे विषय चुने, जो रंग और ब्रश के योग से एकदम सजीव हो उठे है | इसलिए उनके चित्रभाव और सौंदर्य की दृष्टि से सभी के मन में को भाते हैं | परिवर्तित प्रस्थितियो में समन्वय और सामंजस्य स्थापित कर वास्तविकता को प्रकट करना दुलारी देवी के चित्रण के विशेषता है | इनके चित्रण के खूबी सर्वसामान्य और रोजमर्रा की जिंदगी में नित्य नजरों के सामने से गुजरने वाले नजारे हैं | ससामान्यता ही दुलारी देवी के चित्र की असामानता है | उनके चित्र में गरीबी, प्रेम और समानता की सुंदर अभिव्यक्ति देखने को मिलती है | बाजार की मांग पर उन्होंने जहां एक और परंपरा से चले आ रहे रामायण और महाभारत से जुड़े प्रसंगों के चित्र बनाए है, वहीं दूसरी ओर नदी, तलाब, खेत-बधार और दूर-दूर तक फैले गांव जैसे ग्राम वातावरण के चित्रों को भी प्रस्तुत किया है | क्रिकेट जन-प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार, पोलियो और नशाखोरी जैसे सम-सामयिक विषयों पर बनाई गई उनकी पेंटिंग ने खूब वाहवाही बटोरी है | यह उनकी कला के सर्वोत्कृष्ट रूप कहे जाते हैं |

ललित कला अकादमी से वर्ष 1999 में मिले सम्मान और उद्योग विभाग से वर्ष 2012-13 में बिहार सरकार का प्रतिष्ठित राज्य पुरस्कार मिलने के बाद दुलारी देवी का उत्साह और बड़ा | देश के दूसरे राज्यों से भी उन्हें बुलावा आने लगा | कला माध्यम नामक संस्था के माध्यम से बेंगलुरु के विभिन्न शिक्षण संस्थानों सरकारी और गैर सरकारी भवनों की दीवारों पर 5 साल तक चित्रण किया | फिर मद्रास, केरल, हरियाणा, चेन्नई और कोलकाता में मिथिला पेंटिंग पर आयोजित कार्यशालाओं में शामिल हुई | बोध गया के नौलखा मंदिर के दीवारों पर दुलारी देवी द्वारा बनाई गयी मिथिला पेंटिंग आज भी लोगों का ध्यान आकर्षित करती है | देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं ने भी दुलारी देवी की पेंटिंग का प्रकाशन किया है | विदेशीकला प्रेमी गीता वुल्फ ने दुलारी देवी के जीवन प्रसंग पर आधारित एक सचित्र पुस्तक “फॉलोइंग माई पेंट ब्रश” का प्रकाशन किया है | इस पुस्तक में दुलारी देवी की मिथिला पेंटिंग का विस्तृत ज्ञान उद्घाटित हुआ है |मार्टिल ली कॉलेज के फ्रेंच भाषा में लिखी गई पुस्तक “मिथिला” हिंदी की कला पत्रिका सतरंगी एवं ‘मार्ग’ में भी दुलारी की जीवन गाथा और उनकी पेंटिंग का सुंदर वर्णन है | बिहार की राजधानी पटना में बिहार संग्रहालय में भी कमलेश्वरी (कमला नदी) पूजा पर दुलारी देवी द्वारा बनाई गई पेंटिंग को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया है | दुलारी में वात्सल्य की अतृप्त भावना प्रबल मात्रा में विद्यमान है | जिस औरत का बच्चा मात्र ६ माह में ही चल बसा हो, उसके मन में यह भावना आना स्वभाविक है | शायद यही कारण है कि बच्चों को मिथिला पेंटिंग पढ़ने में दुलारी देवी को असीम आनंद का अनुभव होता है | मिथिला आर्ट इंस्टिट्यूट और सेवा मिथिला जैसे संस्थानों के माध्यम से वह बच्चों को मिथिला पेंटिंग सिखाती रही हैं | इस क्रम में अब तक वह हजारों बच्चों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं | प्रिशिक्षण कार्य से जो भी समय बबचता है, उसका सदुपयोग भाई के बच्चों को पढ़ाने में करती हैं | बहरहाल दुलारी देवी अब तक विविध विषयों पर लगभग 10 हजार पेंटिंग बना चुकी है | दुलारी देवी के कलाकार जीवन की मुख्य सार्थकता यह है कि वह अपने चित्रों के बल पर आत्मनिर्भर रहने वाले कलाकारों में से हैं | आज वही महीने करीब 30 से 35 हजार रूपये कमाती हैं और उनके मुताबिक यह रकम उनकी जरूरते पूरी करने के लिए पर्याप्त हैं | उनके चित्रों को देश-विदेश में पर्याप्त लोकप्रियता और ख्याति प्राप्त हो चुकी है | फिर भी वह अपनी पेंटिंग में शैलीगीत नवीनताएँ लाकर नित्य नया आकर्षण पैदा कर रही है | वह कहती भी है कि अभी थोड़ा ही हासिल किया है, अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है | आज एक मुकाम है, पर मंजिल अभी शेष है |

Written By :- Ashok Kumar Sinha
Book name :- बिहार के कालजयी शिल्पकार
Manish tripathi An alumnus of the National Institute of Fashion Technology Delhi
Manish Tripathi The man who curated himself with confidence and now curating the Indian Fashion Industry; From daily wear to Bollywood
An alumnus of the National Institute of Fashion Technology Delhi, designer Manish Tripathi is carving new paths with his illustrious achievements. Owing to his extensive knowledge and sharp acumen for fashion textiles, he has successfully established himself as the national advisor to the Ministry of Textiles for India Handloom Brand.

He started labels AntarDESI and Naveli, that has created a go to destination for made-to-measure and bespoke services.

Tripathi has designed apparels for popular names in film industry, sports celebrities, bureaucrats, diplomats, events such as Cannes, and political stalwarts. Committed towards the cause of social upliftment of the handloom and handicraft industry of India, he has been working with weavers community to revive the hand weaved fabrics.

His works in few lines

Presently he is running his menswear brand “AntarDESI” and women’s wear “Naveli”. He and his team co-creates Indian theme and design as per the speciality, look and occasion for the clients. Also, he is working with corporate companies like Patanjali. He worked in IPL few years ago. He works closely with the weavers and he enjoys working with them.

Common connection while working on several things

His works are function oriented. People come to him for solutions. His designs and creations are not imposed on the clients. He genuinely tries to understand what the requirement of the client is after meeting with them. He looks at what occasion the client wants their ensemble for, their budget, choice etc. Then by assessing his/her personality he advises and provides services. He also designs office wears which pulls off simplicity with class. He enjoys solving his clients issues.

The decision which brought him to what he’s doing now

He was always inclined towards creative domain. Always wanted to do something which has creativity in it. When he was in standard 8th, 1999, he came to realize that he can move forward in the fashion industry. He decided to step in it, got to know about National Institute of Fashion Technology and National Institute of Design. During studies, he came to know that the things he was designing and creating since childhood, are valued by people in the market. For him, designing is a solution. Designing is not about imposing what we want to do, it is more about understanding what we want and then doing that.

What he thinks about his achievements

He thinks he achieved his goals till 10% and he believes he has a long way to go. According to him, success and ambition doesn’t have to be drafted in one image, it has to be dynamic. We keep changing on our goals and later we come to know our ultimate goal which encourages us to achieve it.

His design aesthetic

My aesthetic is contemporary designs on traditional silhouettes. It is experimental yet classic and aims at creating something for everyone.

His background story in few lines

He is from Lucknow. He was high on Bollywood and passionate about designs since childhood. He had an immense support from his family and friends. He thinks he wouldn’t reach the place without their support where he is standing now.

The change he is driving towards

In his words, “It is challenging sometimes to justify International designs with Indian aesthetics but it’s all the more rewarding and appreciated when you are able to pull off something like that, which is why personally they are my favorite projects to work on. We try to revive the Indian handloom in whatever way we can, especially crafts that are on the verge of extinction. We bring various clusters to the limelight and try to create a demand for it in the market.”

His efforts towards the Social Upliftment of weavers clusters and handloom textiles

Besides the initiative from the Ministry of Textiles for India Handloom Brand, he tries to source fabrics from the weavers community and serve it an audience that will not just appreciate the collection but also value as it deserves. He also tries to source fabrics from NGOs and other such organisations that are working for the upliftment of the weaver clusters.

Achievements till date

He ventured into the Bollywood circuit for the first time by designing clothes and styling the stars of the 2012 movie ‘Life Ki Toh Lag Gayi’. In 2015, He designed and styled the artists of K.C. Bokadia’s movie “Dirty Politics”. He worked with Bollywood celebs like Mallika Sherawat, Jackie Shroff, Ashutosh Rana, Om Puri, Naseeruddin Shah, Anupam Kher, Rajpal Yadav, Sushant Singh, Atul Kulkarni, and Ranvir Shorey. He is also known for dressing up the political figures like Nitin Gadkari, Rajnath Singh, Rajeev Shukla, Anurag Thakur and Shivpal Yadav.

His dream clients in Bollywood/Hollywood/the world of Politics,

His dream clients in Bollywood are indisputably Amitabh Bachchan and Shah Rukh Khan. He wishes in Politics ,he will be able to fulfill his dream by designing for the nation’s most popular leader Shri Narendra Modi ji.

His teammates and supports till date

He thinks it would be injustice to point out some names who supported him in his journey, because he had most of the supports whenever and wherever he needed. He thanks to his college friends who were with him during his struggle times.

He owes his success to his knowledge, hard work and support from family and friends

He had always been fascinated by fashion, which led him to create something new and unique. He was clear about his vision, and knew his strengths since his college days. He believed in his knowledge about fashion textile. The hard work and support of family and friends encouraged him and finally he is that stage where he always wanted to be.

Challenges to craft modern globally relevant design with handloom

It was challenging sometimes for him to justify International designs with Indian aesthetics but it’s all the more rewarding and appreciated when he is able to pull off something like that, which is why personally they are his favorite projects to work on.

The biggest change in the Indian fashion industry according to him

Indian fashion industry is relatively fresh and he thinks the introduction of Fashion Weeks has been one of the greatest moments. Besides that the recent interest and growth of handloom in the mainstream fashion has been one of the best things that has happened.

How the fusion of Indian and western silhouettes are influencing today’s designing

Amalgamation of the two has always been interesting and the contemporary designs we see on ramp are a fine example of the same. Today people, both designers and consumers, are willing to be experimental with their style. This gives designers the flexibility and scope to keep trying new ways to find the right concoction of Indian and western silhouettes.

The best dressed people globally according to him

Karl Lagerfeld, Saif Ali Khan, and Sonam Kapoor.

His attitude towards discipline

Discipline is what everybody should follow to achieve his/her goals. Self discipline helps you to focus on your goals. It helps you stick to the work you want to get it done in order to achieve success.

His design philosophy is fresh and minimalistic

As a passionate fashion design graduate, Manish has a keen inclination towards creative pattern-making that produces the most flattering fits on the body. He keeps his designs fresh and minimalistic.

His future plans

He is focused on taking fashion to all the nooks and corners of the country. It would be fair to say India is quite young in the International fashion market and the availability of fashion is limited. His aim is to bring fashion to the streets where it belongs—and not just in the metropolitans but also tier-two and tier-three cities. We are launching an online fashion portal DesignMee.in, which will evolve as the go-to destination for luxury bespoke fashion at the doorstep!!
As a passionate fashion design graduate, Manish has a keen inclination towards creative pattern-making that produces the most flattering fits on the body. His design philosophy is fresh and minimalistic. Alongside, Manish is also a talented caricature artist. Through his unique style, he wishes to express the rampant corruption present in the country today.
गोदना पेंटिंग के जनक - शिवन पासवान
गोदना पेंटिंग के जनक – शिवन पासवान
गोदना पेंटिंग के जनक – शिवन पासवान
गोदना पेंटिंग में मिथिला (मधुबनी) पेंटिंग को एक नया विस्तार दिया है और इस शैली के जनक के रूप में लहेरियागंज (मधुबनी) के शिवन पासवान का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है | 04 मार्च, 1956 को पिता रामस्वरुप पासवान और माता कुसुमा देवी के परिवार में इनका जन्म हुआ था |

उच्च जाति के कलाकारों का वर्चस्व तोड़ा
जाति व्यवस्था भारतीय समाज की कड़वी सच्चाई है | ऊंच-नीच का श्रेणी-विभाजन करके यह सदियों से करोड़ों-करोड़ लोगों को अपमानित और उत्पीड़ित करती आई है | सदियों से चली आ रही इस भेदभावपूर्ण व्यवस्था के विरोध में साहित्य और कला-संस्कृति के क्षेत्र में समय-समय पर आवाज़ें उठती रही है | साहित्य के क्षेत्र में जाति-व्यवस्था के प्रतिरोध में उठा स्वर दलित साहित्य की अवधारणा के रूप में स्थापित हुआ है तो कला संस्कृति विशेषकर मिथिला (मधुबनी) पेंटिंग के क्षेत्र में वह गोदना पेंटिंग के नाम से ख्यात है | गरीबी की फटेहाली में सामाजिक विभेद का दशं सहते-सहते लहेरियागंज, वार्ड नं. 1, मधुबनी से कला के दम पर हांग-कांग, इटली, फ्रांस तक में अपनी गोदना कला का परचम फहरा दिया गया है शिवन पासवान ने | जिस मिथिला चित्रकला में रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक संदर्भों को ही दर्शाया जाता था , कायस्थ और ब्राह्मण कलाकारों का ही वर्चस्व था, उसे तोड़ा शिवन पासवान ने |
साहसी शिवन ने की एक नई परंपरा की शुरुआत

साहसी शिवन ने की एक नई परंपरा की शुरुआत
समाज के हाशिए पर पड़े दुसाध समुदाय के नायक थे राजा सलहेस-राज मैसोदा के राजा | दुसाध समुदाय की लोक स्मृति में उनकी छाप थी | उनको विषय बनाकर मिथिला पेंटिंग में एक नई परम्परा की शुरुआत करना एक बड़े ही साहस का काम था| | लेकिन शिवन घबराये नहीं | फिर क्या था -आगे का मैदान इनका था | पूरे परिवार को मिथिला कला में झोंक दिया | कीर्तिमान ऐसा बनाया कि राष्ट्रपति जैल सिंह के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार और बिहार सरकार से राज्य पुरस्कार पाकर सम्मानित हुए | मां कुसुमा देवी, बेटे कमलदेव पासवान तक को बिहार का राज्य पुरस्कार प्राप्त हुआ | पत्नी शांति देवी को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला| यह सामाजिक स्थिति का अतिक्रमण था |

जाति न पूछो कलाकार की
कला कोई भेद नहीं करती | जाति न पूछो साधु की | लौकिक मान्यता में यह क्षेपक जुड़ गया कि जाति ना पूछो कलाकार की | कलाकार के लिए सामाजिक स्थिति का कोई बंधन नहीं होता- वह कोई भी ऊँचाई छू सकता है | शिवन पासवान बिहार के ऐसे पहले कलाकार हैं जिन्होंने इसे प्रमाणित किया |
गरीबी का साम्राज्य था- किसी तरह मजदूरी कर परिवार की परवरिश होती थी | प्रतिकूल परिस्थिति के बावजूद बालक शिवन की जिद पर उसका नामांकन स्थानीय स्कूल में कराया गया | 10वीं तक की पढ़ाई इन्होंने वहाँ से की | तभी मिथिलांचल में भीषण अकाल पड़ा | लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए | उस समय तक मिथिला पेंटिंग जमीन और दीवारों पर ही बनायी जाती थी और वह भी उच्च जाति की महिलाओं के द्वारा | ब्राह्मणों की भरनी और कायस्थों की कचनी शैली थी | अकाल के दौरान मिथिला कला से जुड़ी महिलाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से सरकार ने उनके व्यावसायिक उपयोग के लिए प्रेरित करना शुरू किया | फलस्वरूप वह दीवारों से उतरकर कागज एवं कपड़े पर आ गई | शिवन के मन में भी इस चित्रकला को सीखने और इसके व्यावसायिक उपयोग का जुनून सवार हुआ | उस समय तक रामायण और महाभारत से जुड़े प्रसंगों को ही मिथिला पेंटिंग में चित्रित किया जाता था | शिवन लुक-छिपकर उनका अध्ययन करने लगे | इनकी माँ को भी उस पेंटिंग की थोड़ी-बहुत जानकारी थी | उनसे भी सीखने लगे | समस्या यह थी कि शिवन या उनकी माँ को पौराणिक आख्यानों की जानकारी नहीं थी | लेकिन सौंदर्य के प्रतीक के रूप में उनके समुदाय की महिलओं के शरीर पर गोदना गोदे जाने का प्रचलन था | गोदना को स्त्री में दर्द सहन करने की शक्ति के रूप में देखा जाता था | जीवन के उतार-चढ़ाव और सुख-दुख को वहन करने की क्षमता का विकास गोदना गुदवाने से ही माने जाने की मान्यता थी | सामान्यत: वनस्पति, पशु-पक्षी, सूर्य, चंद्र, पति का नाम या किसी घटना के स्मृति चिह्न को उनके शरीर पर अंकित किया जाता था | गोदना के उन डिजाइनों को शिवन कागज पर उतारने लगे | गेंदा, सूरजमुखी आदि फूलों के रंगों से पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया | गोदना पेंटिंग की रेखाओं को छोटा कर चित्रकारिता शुरू की | इसने इन्हें बाजार की मांग में ला दिया | इनके प्रयोग का सिलसिला चलता रहा |

उनकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शक
शिवन के सामने दुसाध समुदाय के नायक राजा सहलेस थे, जिनकी वीरता और जिनके वाहनों की तपस्या का कथानक उनके समुदाय की स्मृतियों में रचा-बसा था | बस क्या था- शिवन को चित्रों के लिए नया फलक मिल गया | उन्होंने राजा सहलेस के कथानक को अपने चित्रों में पिरोना शुरू कर दिया | राजा सलहेस के अलावा दीना-भदरी और महात्मा बुद्ध की गाथाओं और उपदेशों पर आधारित चित्र भी बनाने लगे | फिर इन्हें उपेंद्र महारथी का संरक्षण और सहयोग मिला | ये पटना आकर उपेन्द्र महारथी के मार्गदर्शन में चित्रों की रचना करने लगे | पटना इनका अस्थायी ठिकाना हो गया | यह मिथिला पेंटिंग की शैली का नया अध्याय बन गया | इनका नाम हो गया | एक नई कला-पटरी पर जीवन उतर गया | एक नया डिमांड क्रिएट हो गया | कायस्थों की कचनी और ब्राह्मणों की भरनी शैली से इतर गोदना शैली में जीव-जंतुओं, पेड़-पौधे, आस-पड़ोस के जीवन को तीर और सघन वृतों के माध्यम से उकेरना जारी रखा | शिवन पासवान द्वारा बनाई जाने वाली गोदना पेंटिंग की रेखाओं में एक अनगढ़पन होता है, जो उसे विशिष्ट बनाता है | गोदना पेंटिंग की इनकी शैली कायस्थों की कचनी और ब्राह्मणों की भरनी शैली से इतर है | लेकिन उन शैलियों से प्रेरित भी है |

कला के प्रति समर्पण
आज बाजार में शिवन पासवान के चित्र 500 से 10,000 रु में बिकते हैं | ये वॉल-पेंटिंग भी कर रहे हैं | वर्गफीट की दर से इनका भुगतान मिलता है | पूरा परिवार कलाकारिता को जीवन-मर्म बनाकर भिड़ा हुआ है | बेटी की शादी हो गई | वह भी पेंटिंग से जुड़कर नाम कमा रही है | इसे कहते हैं कला के प्रति समर्पण | राजा सहलेस के जीवन के कथानक के ऊपर इनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग को पटना के बिहार संग्रहालय प्रदर्शित किया गया है | शिवन पासवान की साधारणता में असाधारणता है | कोई भेदभाव नहीं है | लोक को समर्पित हर चरित्र इनकी पेंटिंग का विषय है | इन्होंने मीराबाई और गोविंद की कला श्रृंखला बनाई है | धर्मराज युधिष्ठिर पर आधारित चरित्र का प्रकाश बिखेरने वाले पौराणिक पात्रों को भी केंद्र में ला रहे हैं | इनकी लंबी साधना कला के प्रति समर्पण की मिसाल है | लहेरियागंज को कला मंडप में बदल दिया है | प्रयोग की ऐसी जमीन विकसित की है कि देश-विदेश में जहाँ कहीं भी प्रदर्शनी लगती है, प्रयोग धार्मिता को मापदंड की तरह प्रदर्शित करने के लिए शिवन पासवान की खोज होती है |

“पैसा कमाऊ मशीन” बनते जा रहे हैं आज के युवा कलाकार
70 के दशक से राजा सहलेस और अन्य नायकों के जीवन वृत को अपने रंग से रंगते-रंगते शिवन आज लीजेंड बन गए हैं- एक जीवित दंतकथा | गोदना पेंटिंग के काम को इन्होंने इस दरजे तक पहुंचा दिया है कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसकी एक विशिष्ट पहचान बन गई है | लेकिन शिवन पासवान आज भी परिस्थितियों से जूझ रहे हैं | कारण उस संक्रामक भयंकर रोग से जिसका नाम व्यापारिकता है और जो आज के कलाकारों को बेतरह ग्रस रहा है, उससे वे बिलकुल मुक्त है । वे कहते भी हैं की आज के युवा कलाकार व्यापारिकता के करण अपने कोमल भावों को तिलांजलि देकर “पैसा कमाऊ मशीन” बनते जा रहे हैं |

फुलवारी में बदल दी अपनी कलाकारी
अपनी कला के प्रति समर्पित शिवन पासवान वर्तमान में मधुबनी एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में गरीब एवं निर्धन परिवार के युवकों को मुफ्त में प्रशिक्षण दे रहे हैं | अब वे अपनी पेंटिंग में फूलों का रंग नहीं, 50-60 साल तक चटक दिखने वाले एक्रेलिक रंगों का उपयोग कर रहे हैं | इन्होंने अपनी कलाकारी को फुलवारी में बदल दिया है | इनकी प्रेरणा से गांव के गांव कला की फुलवारी में तब्दील होते जा रहे हैं | लेकिन फिर भी यह व्यक्ति तनिक भी अन्यथा दिखने का इच्छुक नहीं है | इन्हें अपने महत्व का पता नहीं है | शिवन पासवान को अपने संबंध में सिर्फ इतना ही पता है कि कोटि-कोटि कलाकारों के बीच वह भी एक कलाकार है |

Nitish Vikram Senior Manager Design Menswear
Nitish Vikram: 10 years of creating the right Fashion that nation’s largest corporates sell across the globe
Nitish Vikram Senior Manager Design Menswear
Nitish Vikram
Senior Manager Design Menswear (Ready to wear and Ready to stitch)
Arvind Limited
Bengaluru, Karnataka, India

Heading Design in Ready to wear Formal, semi formals & Ready to stitch category Product, Nitish Vikram believes in simplifying the techniques behind the designing of the everyday garments like Shirt, Trousers, chinos, Suits, Blazers, Tuxedo, Waistcoat, Bandhgala, Bundi, Kurta & Churidar, Achkan, Sherwani. Let’s get to know about his remarkable journey from a small village called Bahadurganj to Bengaluru.
The man who added values to the Indian Men’s Fashion industry with his strength, intellect and creative instincts by serving the Indian corporate sectors and companies for about 10 years.

Arvind Fashioning possibilities, Blackberrys Menswear.

A small town boy managing the whole Design of a corporate company

Let’s get to know the inspirational and unstoppable, Mr.Nitish Vikram. A small town boy whose life changed drastically after stepping out of his town.

He describes himself as a Senior Manager menswear designer in the company known as Arvind Limited taking care of all the designs of their ready to wear and ready to stitch garments across 150 stores that are retailed in the markets.

So Let’s hear it from him how these all have happened in his life. He describes his life as a result of hard work and dedication towards his ideology of solving the problem.

The common connection for Mr. Nitish Vikram in doing several tasks at the same time is creative thinking in it.
Being a designer he concludes designing is not a job it is a lifestyle and thought process. It is about creativity and having fun all the time. Directly or indirectly he is always involved in the designing process whether he is designing or not. So it’s the creative thinking that helps him in multitasking.

Designing was never a goal for him. It came as a surprise
Every person should have a purpose in his/her life and in his case he wanted to see himself as a problem solver the problem. He was totally unaware of designs but subconsciously he was aware and was living it.
Initially, he wanted to join the army and serve our country but he, unfortunately, couldn’t clear it. So then he thought about designing because it was the only field that can solve the problem.
So getting through the National Institute of Fashion Technology, India was never a target and becoming a designer was never a dream for him. It was a byproduct for him and he got it because he had a different vision to it. He specifically went into garments to understand even the wicked and hidden problems to solve them. In the process of understanding the relationship between problem and solution, he reached a level where he designed the most practical and wearable fashion and won several awards; it was a proud moment for him.

Learning is a continuous process is the mantra of a successful life
Continuous learning is a process of life, the pinnacle of the attitude and vision of the universe. The day we stop learning new things professionally / personally, literally, it would be the end of life. The learning is the only thing that distinguishes humans from animals. Being a human, we have a great privilege to think and we must utilize it.
If you are a creative person you can’t be satisfied with what you have done because you are learning every day and as much as you learn you fell this is less and you want to get more. It is a continuous process comes with us till the end of our life.

The triggering event was when his creative thinking made people awestruck.
So many things have happened in his life but he remembers that one assignment that has changed his perspective towards his own design.
It was an incident from his college that they were doing an assignment with Asha Bakshi ma’am and she told them to make a women’s wear Blazer..that was their learning phase of making a Blazer. everybody has to get inspired by something or anything. It was like a eureka blazer for everyone.so he got inspired by a seashell and made the complete blazer. Then after completion, the blazer went for the jury. He didn’t realize the product came out as an amazing product until Bakshi ma’am has told him that the blazer can be worn in 10 different ways just by changing its buttoning position and she told him, the 10 ways the blazer change its shape and the whole aesthetic. he was really surprised being a kid couldn’t control his emotions and at that moment she told him the value of thought process in creative thinking and it was so original. From there he learned that whenever you design anything the thorough process is very important to create something new and you will end up with a great result which you have never seen in your life.

We are driving towards sustainable fashion
Sustainable fashion is a movement and process of fostering change to fashion products and the fashion system towards greater ecological integrity and social justice. Sustainable fashion concerns more than addressing fashion textiles or products. It comprises addressing the whole system of fashion. A key example of the need for systems thinking in fashion is that the benefits of product-level initiatives, such as replacing one fiber type for a less environmentally harmful option are eaten up by increasing volumes of fashion products. An adjacent term to sustainable fashion is eco-fashion.
The fashion industry has a clear opportunity to act differently, pursuing profit and growth while also creating new value and deeper wealth for society and therefore for the world economy. Being in a corporate one has to be in a system and work according to them. But still, we produce those products which are relevant to the ecosystem and also to the customers also.
It should be usable and does not create any clutter. They always use packaging that is creative and biodegradable. He always designs with the purpose it is difficult but not impossible. profit making is one thing but harming our ecosystem for that is not acceptable so Always try to protect the environment as much as u can by doing your part.

Sharing knowledge and teamwork
The more you share your knowledge, it would come back to you in multifold. Therefore, you should never hesitate to share your knowledge. There are many people who are always reluctant to share their knowledge because of their insecurity feeling. If somebody is in need to know something, explain to them in the best possible way, it would definitely you would benefit in one or the other way. Whatever, you are explaining to the other people would be remembered by you for life long.

It is a universal truth that one cannot achieve anything alone you must have a team or support of others.
Nothing in this world can be done alone. “My policy is its not my idea it’s our idea it’s of those people who work together to achieve any desired results” Whatever he has achieved today is because of the support and teamwork of those people who have worked with him and have strengthened him.

What he’s today is just because of his mother
Mother is the most lovable and adorable person. No love can exceed or even match the love of a mother for her child. She is the best trainer and guide of her child, no less than God, always the first person whom we think of in our happy and not so happy times. She has been blessed with the power to nurture a complete life in her womb with intense love and care.
He owes his success to his Mother. She was the only person who pushed him to come out of the Village and Study in the city and have exposure. His family has supported him a lot in his journey It started his village to Allahabad then Delhi and now all over the world. There was no turning back

To all young people: you have the unique chance to design a new world that can even be better than the one we live in.
Creating such a world requires not only critical and new thinking but also courage. Let him give a suggestion based on his personal experience: pay attention to activities, ideas, and areas where you love the process – not just the results or the outcome. People are often attracted to tasks where they can receive validation through results. However, over the years, He has learned that true fulfillment comes from a love of the process. Look for something where you love the process and the results will follow. you have the power to create a better world

“Discipline is the bridge between goals and accomplishment.”
Discipline is a concept everyone is aware of, but few truly understand. The most successful people in life exert discipline on a daily basis. It is vital to every living being and without it, the world around us would be chaos. Discipline brings stability and structure into a person’s life. It teaches a person to be responsible and respectful. The observance of well-defined rules is the basis of society. If there were no discipline, people would do whatever they wanted and make mistakes without putting the consideration of others first and foremost. It promotes good human behavior to better society and makes it a more enjoyable place for everyone to live. To sum up, he can say it means we should obey certain rules in life to achieve what we want to accomplish.
WORLD BLOOD DONOR DAY
WORLD BLOOD DONOR DAY
Every year, on 14 June, countries around the world celebrate World Blood Donor Day. The event serves to thank voluntary, and unpaid blood donors for their life-saving gifts of blood and to raise awareness of the need for regular blood donations to ensure the quality, safety and availability of blood and blood products for patients in need. World Blood Donor Day is one of eight official global public health campaigns marked by the World Health Organization (WHO).

One of the aims of the day is to encourage younger people, who might be a bit nervous or unsure about giving blood, to feel encouraged to sign up and start donating, so that the donor population doesn’t decline but stays strong. It is also to highlight the need for donations to be regular in order to keep stocks and quality of blood donations high.
Blood donation saves millions of lives annually and helps with the recovery and health of patients who have illnesses or injuries, complex operations or childbirth problems.

“To the young and healthy it’s no loss. To sick, it’s the hope of life. Donate Blood to give back life”.


KEY FACTS

  • Blood transfusion saves lives and improves health.
  • A healthy adult can donate blood without any risk. The body is able to compensate lost blood in 24 hours, but red blood cells take a few weeks.
  • A person can donate once every three months, but not more than five times a year.
  • It is more appropriate for men to donate blood than women; due to such women-related circumstances as pregnancy, abortion, anaemia, weight loss and other physiological changes.
  • Blood donation does not weaken the body.
  • There is no substitute for human blood; the gift of blood is the gift of life.
  • One donation can help save the lives of up to three people.
  • Platelets help blood clotting, giving those suffering from leukaemia and other tumours a chance to live.
  • There are approximately 108 million blood donations worldwide.
  • In low-income countries, up to 65% of blood transfusions are given to children under 5 years of age.
  • In 73 countries, more than 90% of their blood supply is collected from voluntary, unpaid donors.

BACKGROUND

World Blood Donor Day is celebrated every year by the people in many countries around the world on the 14th of June. World Blood Donor Day is celebrated every year on the day of the birthday anniversary of Karl Landsteiner on 14th of June in 1868. This event celebration was first started in the year 2004 aiming to raise public awareness about the need for safe blood donation (including its products) voluntarily and unpaid by the healthy person. Blood donors are the key role player on this day as they donate life-saving gifts of blood to the needed person.

It was first initiated and established to be celebrated annually on 14th of June by “the World Health Organization, the International Federation of Red Cross and Red Crescent Societies” in the year 2004. World Blood Donor Day was officially established by the WHO with its 192 Member States in the month of May in 2005 at the 58th World Health Assembly in order to motivate all the countries worldwide to thank the blood donors for their precious step, promote voluntary, safe and unpaid blood donations to ensure the sufficient blood supplies.

World Blood Donor Day celebration brings a precious opportunity to all donors for celebrating it on a national and global level as well as to commemorate the birthday anniversary of the Karl Landsteiner (a great scientist who won the Nobel Prize for his great discovery of the ABO blood group system).

WHY WORLD BLOOD DONOR DAY IS CELEBRATED

Blood donation is a quick, easy, and incredibly safe process, but only a small subsection of the population are regular blood donors. Out of the people who are considered “eligible” to donate blood, only about 10 per cent choose to do so. Because blood donation is an entirely voluntary process, World Blood Donor Day is an important reminder of how there can never be such a thing as “too many blood donations.”

World Blood Donor Day is celebrated to fulfil the need of blood transfusion and blood products transfusion to the needed person anywhere in the world. WHO runs the campaign by organizing many activities in all countries highlighting people’s stories who need immediate blood donation to continue their heartbeat. The campaign saves more than millions of lives annually and gives a natural smile on the face of blood receiver. Blood transfusion helps patients suffering from a variety of life-threatening health conditions and stimulates them to live longer and quality life. It solves lots of complex medical and surgical procedures all around the world. The campaign plays a great life-saving role for caring the women during pre and post-pregnancy.

Donated blood is used to save lives of severely anaemic women, anaemic kids, accident victims having excess blood loss, surgical patients, cancerous patients, thalassemia patients, people suffering from haemophilia, sickle cell anaemia, blood disorders, blood clotting disorders and many more. Having an adequate blood supply is, obviously, necessary in every country on earth. Right now, many developed countries are able to rely on voluntary, unpaid blood donations to meet 100% of their blood supply needs. But finding those volunteers and making sure the blood is safe is still a big issue in developing countries, and they often have to rely on either family or paid donations. The WHO is working hard to ensure that, in the near future, blood donations all over the world will be entirely unpaid and voluntary.

THEME

The theme for World Blood Donor Day is “Blood donation and universal access to safe blood transfusion” to achieve universal health coverage. The slogan for the campaign is “Safe blood for all” to raise awareness about the universal need for safe blood in the delivery of health care. The host country for World Blood Donor Day 2019 is Rwanda. the global event will be held in Kigali, Rwanda on 14 June 2019.

The theme of World Blood Donor Day 2018 is “Blood connect us all” and the event is hosted by Greece. This day is celebrated to thank the blood donors, to acknowledge them and encourage blood donation and new donors. The slogan of this day is ‘Be there for someone else, Share Life, Give Blood’, which refers to the care given to others while donating blood.

BLOOD DONATION

Blood donation is a voluntary practice that helps those in need of blood transfusion due to some accident or illness. The most essential body fluid, excessive blood loss can cause an untimely death if the need is not fulfilled immediately. Hence, blood donation is a life-saving procedure. Blood can neither be artificially produced nor can it be stored beyond a definite time. Amidst the three components of blood, plasma can be preserved for years, red blood cells can be stored for 42 days and platelets can be kept only for 5 days. Consequently, the rush for blood is always on the high in hospitals and the only way to meet this requirement is through donation.

WHY DONATE BLOOD?

There is a tremendous demand for blood in hospitals. Many patients die because they are not able to cope with the loss of blood. The blood donated is used to:

    • Replace blood loss during injury as in accidents.
    • Replace blood loss during major surgeries. Help patients with blood disorders like haemophilia survive.
    • Help burnt patients receive plasma that may be critical for their survival.
    • Raise haemoglobin levels (through transfusions) in patients with chronic ailments like kidney diseases, cancer and anaemia.

WHO CAN DONATE BLOOD?

    • Blood donors have to be enjoying good health and feeling well.
    • Blood donors have to be at least 18 years age (maximum age being: 65 years).
    • Weight: at least 50Kg
    • Haemoglobin level: 13 to 17.5 for men and 12.5 to 14.5 for women
    • Pulse: 50 to 100 beats/min and regular
    • Temperature: should not exceed 37.5° C
    • Blood Pressure: the acceptable range is 180/100 to 100/60.

WHO SHOULD NOT DONATE BLOOD?

The following categories of people should avoid donating blood

    • Pregnant or lactating women, or those who have recently had an abortion.
    • Persons who are on steroids, hormonal supplements or certain specified medication.
    • Persons who have had an attack of infection like jaundice, rubella, typhoid or malaria.
    • Persons who have undergone surgery in the previous six months.
    • Persons who have consumed alcohol in the 48 hours prior to donation.
    • Women should avoid donation during their menstruating period.
    • Persons with any systemic disease like heart disease, kidney disease, liver problems, blood disorders or asthma should NOT donate blood.
    • Persons suffering from infections transmitted through transfusions like HIV, Hepatitis, Syphilis etc should not donate blood.

ADVANTAGES OF BLOOD DONATION

    • Stimulating the bone marrow to produce new red blood cells, white blood cells and platelet
    • Refreshing the blood system
    • Reducing the risk of cardiovascular diseases
    • Getting rid of excess iron accumulated in our body which may lead to hemochromatosis.

PRECAUTIONS

Before donation

    • No need to be fasting before donating. It is preferable to eat non-greasy food for two hours from the donation.

After donation

    • Drink extra fluids for the next day or two.
    • Avoid strenuous physical activity or heavy lifting for the next five hours.
    • If you feel lightheaded, lie down with your feet up until the feeling passes.
    • Keep the bandage on your arm for at least 4 hours.
    • If you have bleeding after removing the bandage, put pressure on the site and raise your arm for three to five minutes.
    • If bleeding or bruising occurs under the skin, apply a cold pack to the area periodically during the first 24 hours.
    • If your arm is sore, take a pain reliever such as acetaminophen. Avoid taking aspirin or ibuprofen (Advil, Motrin, others).
    • Avoid smoking after donating
    • Don’t lift heavy things using the used arm in blood donation for 12 hours.

Blood Donation Side Effects

Usually, there are no side effects of blood donation. It is common to experience slight dizziness or lightheadedness after blood donation. Redness may occur in the injection area.

Tips on Blood Donating

    • Please have a good meal at least 3 hours before donating blood.
    • Please accept the snacks offered after the donation. It is recommended to have a good meal later.
    • Please avoid smoking on the day before donating. One can smoke 3 hours after donation.
    • One is not eligible to donate blood if you have consumed alcohol 48 hours before donation.
DISCLAIMER

This content including advice provides generic information only. It is in no way a substitute for a qualified medical opinion. Always consult a specialist or your own doctor for more information.
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