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godawari dutta padm shree

मधुबनी कला को समेटती, संवारती और समृद्ध करतीं गोदावरी को मिला पद्मश्री

मधुबनी कला को समेटती, संवारती और समृद्ध करतीं गोदावरी को मिला पद्मश्री

पांच दशक से इस कला को समेटती, संवारती और समृद्ध करतीं गोदावरी को अब जब पद्मश्री मिला है तो वे कह रही हैं कि मेरी तपस्या को मिला है फल…


गोदावरी दत्त का जन्म एक निम्न मध्यम वर्गीय कायस्थ परिवार में दरभंगा के लहेरियासराय में 1930 में हुआ था. इनका विवाह मधुबनी के रांटी गांव में उपेन्द्र दत्त से हुआ. जहां से उनकी पेंटिंग्स की यात्रा शुरू हुई. इससे पहले भी दत्त को दर्जनों राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.मिथिला की शान हैं गोदावरी दत्त। 90 साल की उम्र है लेकिन जोश और समर्पण बरकरार है। मधुबनी कला को घर की दीवारों से निकाल कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर लेकर आने में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। पांच दशक से इस कला को समेटती, संवारती और समृद्ध करतीं गोदावरी को अब जब पद्मश्री मिला है तो वे कह रही हैं कि मेरी तपस्या को मिला है फल….

तपस्या का फल है पद्मश्री मिला

प्रशासन और मेरे प्रशंसक चाहते थे कि मुझे पद्मश्री मिले लेकिन काफी देर से मिला। लगता नहीं था कि मुझे मिलेगा लेकिन मेरे परिश्रम और तपस्या का फल है यह। मुझे लगता है कि हमारी कला पर मिथिला की महारानी सीता जी का वरदान है। महिलाओं की जिंदगी बदल गई है इस कला से। यह हमारी संस्कृति है, हर घर में होती है लेकिन घर में ही सिमट कर रह जाती थी। 1965 के बाद से यह बाहर आई है। 1970 के बाद ललित नारायण मिश्रा ने मधुबनी में हैंडीक्राफ्ट का ऑफिस खुलवाया और हम कलाकारों की मदद की। इसके बाद मैं देश-विदेश में अपने काम का प्रदर्शन कर मिथिला कला को आगे लेकर गई।

मेरी कला गुरु मेरी मां

मेरी मां सुभद्रा देवी बहुत बड़ी कलाकार थीं। जब मैं बहुत छोटी थी, पांच-छह साल की थी तो जब मां पेंटिंग करतीं तो मैं उसमें अपना हाथ चला देती थी। मां का डर लगता लेकिन मां कहतीं कि तुम हाथ चलाओ। कुछ बिगड़ेगा तो हम ठीक करेंगे। वे मुझे प्रोत्साहित करती रहीं। मेरी कला गुरु मेरी मां रही हैं। हमारे यहां ब्याह-शादी में यह कला अनिवार्य है। हर परिवार में लड़के-लड़की की शादी में इस कला का बहुत काम होता है। कागज पर इसे उकेरा जाता है। कोहबर, मंडप में बनाया जाता है। जरूरी है कि सबको इसका ज्ञान हो। बांस के डाला पर कागज लगाकर उस पर मिथिला पेंटिंग की जाती है और शादी का सामान रख कर दिया जाता है। मिट्टी की दीवारों पर इसे बनाया जाता है।

मिथिला आर्ट बिहार की संस्कृति

मिथिला आर्ट बिहार की संस्कृति है। बचपन में ही हर मां घर के काम के साथ-साथ अपने बच्चों को यह कला सिखाती थीं। हर गांव में गुरुजी सब बच्चों को दालान में पढ़ाते थे। मैं भी पढ़ती और मां से कला सीखती थी। मैंने ब्याह-शादी से लेकर, राम-सीता, राधा-कृष्ण तक काफी चित्र बनाए हैं। इसके अलावा मोर, सुआ बनाना शादी में शुभ माना जाता है। जब मैं इस कला में आगे बढऩे लगी तो कोई भी जो बनाने को कहता तो मैं बना देती थी। मैंने बहुत सारे चित्र बनाए हैं। चाहे कितनी ही देर लगे लेकिन मैं अच्छे और साफ-सुथरे चित्र बनाती हूं।

godawari dutta Painting

जापान में बना म्यूजियम

जापान में म्यूजियम के लिए मिथिला पेंटिंग बनाने मैं सात बार जापान गई। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि एक अकेली औरत जापान जाकर अपरिचित परिवार के साथ घुलमिल कर रह सकती है, मिथिला पेंटिंग्स बना सकती है। छह महीना वहां रहती और छह महीना यहां। हमारा एंबेसी से संबंध रहता था। उस म्यूजियम के डायरेक्टर टोकियो हासेगावा ने मुझे कहा कि आप यहां अपना काम करने आए हैं। आप जो बनाएंगे उसे हम मिथिला म्यूजियम में रखेंगे। हमने वहां लकड़ी के बोर्ड पर सीमेंट डालने के बाद बनी सरफेस पर काम किया। वे कहते कि यह मिथिला की वॉल पेंटिंग है। वहां मैंने अद्र्धनारीश्वर बनाए जिनके एक हाथ में डमरू था और एक हाथ में त्रिशूल। उसे बनाने के बाद डायरेक्टर ने डमरू बनाने की रिक्वेस्ट की। आठ फीट लंबे और सात फीट चौड़ाई के डमरू का डिजाइन मैंने बनाया। फिर त्रिशूल बनाया। वे मेरे डिजाइन को काफी पसंद करते।

हैंडपेंटिंग देख चौंक गए लोग

जापान के उस म्यूजियम के डायरेक्टर ने बताया था कि पहले मैं मिथिला से पेंटिंग लाकर बेचता था लेकिन जब मैंने प्रदर्शनी में लोगों को बताया कि इसे हाथ से बनाए गए रंगों द्वारा कलाकारों ने बनाया है तो उन्होंने विश्वास नहीं किया और कहा कि यह तो प्रिंट जैसा लगता है। तब कला के कद्रदानों ने कहा कि आप कलाकारों को लाकर हमें डेमो दिखाएं तब हम मानेंगे। इसलिए वे हमें जापान लेकर गए। जब सातवीं बार के बाद मैं वापस आने लगी तो उन्होंने डाइनिंग टेबल पर कहा कि हम भारत सरकार को बताएंगे कि आपके देश के मिथिला क्षेत्र से कलाकारों को लाकर जापान जैसे देश में मैंने मिथिला म्यूजियम खड़ा किया है आपके देश में एक भी म्यूजियम नहीं है जिसमें इन कलाकारों की पेंटिंग रखी गई हो। आने वाली पीढ़ी इनकी कला देखने के लिए जापान आएगी।

बिहार म्यूजियम में कोहबर की पेंटिंग

वहां से आने के बाद मैंने दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और मिथिला में सरकार के अधिकारियों से प्रार्थना की कि आप एक म्यूजियम बनाइए। काफी प्रयासों के बाद यह कामना पूरी हुई। हमारा सौभाग्य है कि बिहार म्यूजियम बना है। इसमें सब आर्ट रखे हैं। मेरी भी बारह बाई अठारह फीट साइज के कैनवास पर लाल रंग से कोहबर की पेंटिंग लगाई गई है, जिसे काफी पसंद किया गया है। अब तो सरकार मिथिला आर्ट पर काफी काम कर रही है। सरकार ने मधुबनी, दरभंगा और पटना जैसे स्टेशनों पर पेंटिंग लगाई हैं।

इस धरोहर को जिंदा जरूर रखें

12 देशों में अपनी कला की प्रदर्शनी लगा चुकी हूं। जर्मनी भी गई। तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने राष्ट्रीय पुरस्कार दिया। कई बार भारत सरकार की तरफ से ट्रेंनिंग दी। सीसीआरटी ने कई बार मुझे बुलाया। अभी भी बुलाते हैं लेकिन पैरों से चल नहीं सकती। हड्डी और नसें कमजोर हो गई हैं। उम्र बहुत हो गई है। 1930 का जन्म है मेरा। हमने अपने घर पर भी पेंटिंग बनाई है। हम कागज और दीवार पर लाइन पेंटिंग बनाते हैं। मैं हमेशा से महिलाओं को बोलती आई हूं कि आप इस कला से जुड़ें, किसी को देरी से भी समझ में आएगा लेकिन साहस न छोड़ें, एक दिन आप जरूर सफल होंगी। घर से किसी भी समय काम कर सकती हैं। बहुत व्यवसाय चल रहे हैं। मैं चाहती हूं कि लोग इस धरोहर को जिंदा जरूर रखें।

RAJU PANNA SIR

Made In India Serving the world; Raju Panna has redefined the fit of the global fashion

Made In India Serving the world; Raju Panna has redefined the fit of World in fashion

Unlike normal peers he had never been too keen on the mainstream education. And, his remarkable skills in sketching along with an extraordinary mind took him to the designing industry. Today he is one of the most popular names in the fashion world.

Let’s get to know Raju Panna of Patna who made his mark at Milan fashion week, Italy, last year.His principal focus is on perfection. He tries to assure that the work he is doing must be done with class and flawless virtuoso.

Talking about work Mr. Raju Panna describes it to be Perfection

With the theme of ‘Design for life’, he pushes himself a bit further every time thinking that it brings him closer to a stupendous excellence. He believes that perfection can’t be built in a single stroke, you have to put yourself in the work you are doing, and after a long and dedicated period of time perfection will knock the door. This is the prime cynosure he considers while doing several things at a time.

For Raju Panna the common connection he makes while doing several tasks at a time is always self reliance and workmanship

He was not focussed on the techniques which were already present in the industry. For instance, if you ask an engineer to construct a wall, he will not build it himself, he will guide to the worker. Cutting the garments is not his work, but he does it himself because the idea which he has on his mind can be understood very well by no one other than him. So, along with designing, he can actually makes it.

The difficult designs I used to think and create, another person could not understand and interpret it. He would say he could not make it out. So, ultimately he had to do it himself.

Intended goals and achievements is what drives him crazy to strive further a bit every time

Before NIFT, he was not in the queue he was aiming to be in. But now he’s in the queue aiming to strive further with having achieved 80% of his plans. Highly ambitious, he still has loads of things in his checklist , and becoming a Globally Renowned Designer being one of them for which he continuously struggles to mark his presence on an international level.

Life was changing but that didn’t stop him from believing in himself and with the support from his family he is where he is standing right now

Raju Panna belongs to a tribal family from Jharkhand. His parents later moved to Patna, where he was born and raised. When he realized his skills, he headed to NIFT Delhi in 1997. It was a life changing experience for him as moving from a small city to the capital city of India was a big move. After Delhi, he went to Italy for his M.A. studies. He has traveled and worked a lot on a Global level.

While constantly leaping forward in pursuance he never left his parents and moved them along with him from Jharkhand to Italy. Going to Italy or any other big places does not mean world class designs can be fabricated there only. A man can create a design even in a forest if he wants to feed his passion! He got this clarity in his vision in his work as well as in his personal life, that it is not necessary to sit in a hub for designing. He can do it anywhere. Last fashion show he did was an instance of his belief that he can work in Italy while sitting in Patna.

When designing he keeps them really practical and feasible for everyone

With a belief in designing for life his designs are always technical and pragmatic, and path-breaking which are apart from normal designs. He thinks that the dresses should be convenient for everyone. This drives him to work on the three elements :technical, practical and perfection.
He has simplified various things in designing by making them technical and practical. In NIFT, he tried to simplified technicalities for 3 years, and has 15 years of experience. Summing that up he can teach people in 2 years. He can save everybody’s life by teaching them experiences who are meant to struggle for 15 years like he did. This experience comes from studies, and now he sees the benefits of studying. When you study, you cut your years short, which gives you more time to live and experience your work.

During every sphere of his life he had a support system of his teammates and friends whom he will always remain grateful to and owe his success

He has 4 people in his team, 3 tailors and his childhood friend Manoj Kumar who has been in all of his works. They try to achieve the quality on the world level, so that if the garment goes out somewhere, it can be able to represent the quality like that of Calvin Klein or some other international brands. So that no one can say that the garment is of low quality or needs more improvements; because it has some professional index and technicalities. They are working close to perfection. He has good tailors and Manoj has been working on their perfection, so that they can achieve an International level. So if they are sitting in Patna, it should not mean they are just here rather working on an international level. He has a lot of support from his team as they are working on his ideas.

His family and friends have supported him a lot. When he was in NIFT, his friends supported him a lot, in terms of money and moral support. If they had not supported him, he would not be standing here. He just had a circle of 5-6 friends who tried a lot to teach him because he was not good in studies.

He follows a mantra of strengthening his skills more and working on his weaknesses. It takes a long period of time but strengthening himself is the key thing. People think they should only work on their weaknesses and then move on to their work. But he is vigorous in this case, as he focuses on his strengths more and tries to excel in it; along with working on his weaknesses. He thinks that once you strengthen your strengths, you have very less people around you. So, strengthen your strengths and work continuously on your weaknesses.

When life gives you lemons, make lemonade of it is what he describes his motto to be while he also considers patience to be equally important; this is what he wants to convey to the new generation.

Although we have competitions, the canvas is very big for any field. Patience is needed in every sphere. For instance, people used to talk about him, that he has not gone anywhere since 10 years. That time he thought that it would not take more than 5 years to get what he had planned. He thinks that it’s a long journey which needs patience and time to reach the final destination where you’ve aimed to be at. Without giving your time, you cannot achieve your goals, there is no shortcut. In his case,he started working after 10 years and now he is getting the result of his work. Not everybody learns from someone, sometimes time teaches us too. So, we need to give in to time and focus and formulate the base.

In his opinion, people should work according to their interests. You should not try to be what you are not. So be what you really are, so that you can work happily for your entire life. We should focus on our work, not on what others are doing. Like, when you are running in a race, you should focus on yourself, not others. We should have an aim to achieve, instead of watching around what people are doing.

Success is directly proportional to discipline and your attitude towards your work; Raju Panna believes in setting goals and achieving them while living a disciplined life

Discipline is a must. We should have a goal that at least one big task can be achieved in a year. It can be anything. Everybody should have their own set of disciplines and rules. Raju Panna always has a target to do a unique task every year, which no one has done yet. He has been following it since a few years. He always tries to do a work which would be a breakthrough in his running field by trying to achieve impossible tasks, whether it is big or small. Unachievable goals are long term plans which takes almost 5 years. He sets small goals and tries to achieve them one by one. And then again plan for 5 year goals and continue the cycle till an extraordinary level is reached. Every year, he plans for the next 5 year. He is committed to his work which helps him in achieving goals his goals. He has been abroad for 18 years and when he returned he planned about doing Milan fashion week in the next 2 years, and finally did it last year. So, we need to set a goal, plan where and how to do it, and go for all the possibilities to achieve it. When you work sincerely, God shows the path to your goals. So keep going on and have faith in your work.

Showing off is not his style and self advertising will never be his motto; he likes to keep his kudos in a low key

He has never trusted in self advertising. Also, he doesn’t like bragging too much about himself. Like he says he won’t even care to create a board to show where the studio of Raju Panna is. He just has a small board as per the norm requires. Working good is the key of advertisement. When you work good, people are sure to notice it. He believes in simplicity and keeping things as simple as they can be. He designs things but lives simply. He wears simple attires and leaves his home in slippers very often because a comfortable and simple life without glitz and show off is all he wants.

Life may get sudden twists but you have to be prepared, this is what life has taught him over the long years

After graduating from NIFT, he got his job. At the same time he was selected for a garment competition, for which he had prepared his garments. For that he asked for a leave of one week from his company. But they did not agree, instead they granted him a leave for just 3 days. Due to that quit his job and started working on designing the garments. During that, one of his friends fled away with a girl whose father was in a police department. They got scared and left their homes. Then he realised he had left his garments at home! After that they wandered on the roads for 3 days, with no home,no food, and no money. They were scared to go to home in fear of being caught by the police but he always had God on his side. Finally, when the day of the competition arrived, and finally he displayed his garments in the show. This is an example of how life gets unexpected twists. 3 days ago, he was homeless and starving, and on the fourth day he was in a luxury hotel.

Undertaking aimed ventures need to be the only aim of one’s life and so does Raju Panna believes when he thinks of what his next goal is going to be

His future plans are sharpening his skills, the next target is to do Ph.D. next year and continue the journey of his impeccably disciplined and visionary life.

RAJU PANNA

Showing off is not his style and self advertising will never be his motto; he likes to keep his kudos in a low key

He has never trusted in self advertising. Also, he doesn’t like bragging too much about himself. Like he says he won’t even care to create a board to show where the studio of Raju Panna is. He just has a small board as per the norm requires. Working good is the key of advertisement. When you work good, people are sure to notice it. He believes in simplicity and keeping things as simple as they can be. He designs things but lives simply. He wears simple attires and leaves his home in slippers very often because a comfortable and simple life without glitz and show off is all he wants.

Life may get sudden twists but you have to be prepared, this is what life has taught him over the long years

After graduating from NIFT, he got his job. At the same time he was selected for a garment competition, for which he had prepared his garments. For that he asked for a leave of one week from his company. But they did not agree, instead they granted him a leave for just 3 days. Due to that quit his job and started working on designing the garments. During that, one of his friends fled away with a girl whose father was in a police department. They got scared and left their homes. Then he realised he had left his garments at home! After that they wandered on the roads for 3 days, with no home,no food, and no money. They were scared to go to home in fear of being caught by the police but he always had God on his side. Finally, when the day of the competition arrived, and finally he displayed his garments in the show. This is an example of how life gets unexpected twists. 3 days ago, he was homeless and starving, and on the fourth day he was in a luxury hotel.

Undertaking aimed ventures need to be the only aim of one’s life and so does Raju Panna believes when he thinks of what his next goal is going to be

His future plans are sharpening his skills, the next target is to do Ph.D. next year and continue the journey of his impeccably disciplined and visionary life.

RAJU PANNA
Super 30 inspire dream 11

Yet ‘SUPER 30’ inspires the next ; DAD DREAM 11 for Design Aspirants

Introduction

Grim-visaged yet scintillating with brilliance, Anand Kumar challenged the education system and established super 30, aimed to prove that if given opportunity the deserving can become world’s most genius mind.
Anand kumar started with a plan to select 30 students with economically weaker sections and tutor them, along with food and lodging free for a year.
The poor are the richest because they value their belongings very humbly. Improving the quality schools across the board has been seen as the best way of reducing gap but due to money the schools and institutions don’t get precise with the selection and admission. In this process the students with a flame inside them to learn and excel don’t get the chance. These minds wither due to the absence of scope. Anand kumar believed that only a king’s son can become a king is not appropriate with this mindset, he chose 30 students across the nation and provided them with sources to climb the ladder of success.

Anand Kumar’s History

Anand kumar was born in Patna Bihar, India. His father was a clerk in the postal department of India. His father could not afford private schooling for his children, and Anand attended a hindi medium government school, where he developed his deep interest in mathematics.In childhood, he studied in Patna High School Patna Bihar. During graduation, Kumar submitted papers on number theory which were published in Mathematical Spectrum and The mathematical gazette. Kumar secured admission to Cambridge University , but could not attend because of his father’s death and his financial condition, even after looking for sponsor in 1994-1995, both in Patna and Delhi. Kumar would work on mathematics during day time and would sell papads in evenings with his mother, who had started a small business from home, to support her family. He also tutored students in maths to earn extra money. Since Patna University library did not have foreign journals, for his own study, he would travel every weekend on a six-hour train journey to Varanasi, where his younger brother, learning violin under N. Rajam, had a hostel room, so that he could work there.

What is Super 30 program

Super 30 a free coaching centre which helps children of the poor get into the prestigious India Institute of Technology(IITs) has joined hands with a non-resident Indian for financial help. The main objective is to give the students employable education through rigorous training. This is what is lacking for the minorities. They don’t get quality technical and job-oriented education due to their poor Financial condition.
In 1992, Kumar began teaching mathematics. He rented a classroom for Rs. 500 a month, and began his own institute, The Ramanujan School of Mathematics (RSM). Within the span of year, his class grew from two students to thirty-six, and after three years there were almost 500 students enrolled. Then in early 2000, when a poor student came to him seeking coaching for IIT and JEE, who couldn’t afford the annual admission fee due to poverty, Kumar was motivated to start the Super 30 programme in 2002, for which he is now well-known. Every May, since 2002, the Ramanujan School of Mathematics holds a competitive test to select 30 students for the Super 30 program. Many students appear at the test, and eventually he takes thirty intelligent students from economically backward sections, tutors them, and provides study materials and lodging for a year. He prepares them for the JEE for the IIT. Anand kumar’s mother, Jayanti Devi, cooks for the students, and his brother Pranav Kumar takes care of the management. During 2003-2017, 391 students out of 450 have made it to the IITs. In 2010, all the students of Super 30 cleared IIT JEE entrance making it a three in a row for the institution. Kumar has no financial support for Super 30 from any government as well as private agencies, and manages on the tuition fee he earns from the Ramanujan Institute. After the success of Super 30 and its growing popularity, he received many offers from the private sector – both national and international companies – as well as the government for financial help, but he always refused it. He wanted to sustain Super 30 through his own efforts. After three consecutive 30/30 results in 2008-2010, in 2011, 24 of the 30 students cleared IIT JEE. In 2012, 27 of the 30 students, in 2013, 28 out of 30 students, in 2014, 27 of the 30 students, in 2015, 25 of the 30 students, in 2016, 28 out of 30 students, in 2017, 30 out of 30 students in 2018, 26 out of 30 students cleared the prestigious IIT JEE examination. Kumar does not accept donations for the programme. His team creates the fund by organizing evening classes in Patna.

Awards

Anand kumar was honoured with the “Global Education Awards” on November 8 2018 by Malabar Gold & Diamonds in Dubai. Anand Kumar was also awarded “Rashtriya Bal Kalyan Award” by the president of India Ram Nath Kovind.
DAD DREAM 11

DREAM 11

NIFT, NID, UCEED are now free. Design is a new and booming career. It has been seen as a expensive course and taking advantage of the same the creativity is being judged on the basis of money now. Though the national colleges have several options but the fact about the ways of studying design without spending a lot has been kept hidden by the coaching and private institutions. It is need of the hour to create awareness and make students avail all the existing resources of government and other  institutions that run for non-profit.

Students who are instinctively creative are supposed to be aware and DAD-Design Awareness Drive has taken up the initiative. To make the initiative far more strong, DAD is looking for 11 design aspirants who want to join NIFT- National Institute of Fashion Technology, NID- National Institute of Design, CEED-UCEED-IIT- Design department of Indian Institute of Technology, India, IICD- Indian Institute of Crafts and Design, FDDI- Footwear Design Development Institute. These aspirants/students will be trained for free by NIDians, IITans, NIFTians, IIMs and other educational mentors.

The registrations are on students can call on 9304516169, to register

“SUPER 30”

Bollywood Director Vikas Bahl film titled “super 30” on the life and works of Anand kumar and vikas bahl casted Hrithik roshan as Anand kumar in this film.

Our Inspiration

A national level test, searching 11 DESIGN ASPIRANTS who are passionate about design as a career and can be a leader of tomorrow in design industry to support India in becoming an ‘International Design Hub’

One of it’s main objectives is to work towards quality design education. And DAD- Design Awareness Drive is all set to work towards execution of the mission planned by National Design Policy.

“The nature is to be utilized for our needs and just to suffice our greeds”

Good inspires and leads to the best and bad attracts worse. Taking inspiration from our surroundings is the best foot forward to positive development.

Inspired by THE SUPER 30……… Mr. Anand kumar

Pride of Mithila Painting

मिथिला पेंटिंग की शान हैं बउवा देवी (Baua Devi)

मिथिला पेंटिंग की शान हैं बउवा देवी

बउवा देवी (Baua Devi) का जन्म गुलाम भारत में मधुबनी के सिमरी (राजनगर) गांव में 25 दिसंबर, 1942 को हुआ था। मिथिला पेंटिंग के प्रति बउवा देवी (Baua Devi) का प्रेम और पागलपन इस कदर था की पांचवी कक्षा में ही पढाई छोड़कर इसी में रम गई। 12 साल की उम्र में शादी के बाद ये जितवारपुर आई। परंपरा से चित्रित मिथिला पेंटिंग दादी और माँ से होकर इनके खून में था। उस समय तक शादी एवं पर्व-त्योहारों के अवसर पर मिथिला पेंटिंग घर की दीवारों पर उकेरी जाती थी।

बिहार की संस्कृति मिथिला पेंटिंग

बिहार के मधुबनी (मिथिला) पेंटिंग की चर्चा आज राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है। यह कला एक बड़ा व्यवसाय बन चुकी है। इससे जुड़े कलाकार काफी पैसा भी कमा रहे हैं। मिथिला पेंटिंग को यदि उसकी वर्तमान सम्पन्नता की दृष्टि से देखें तो यह उल्लेखनीय सफलता है और सफलता से बड़ा कोई यश नहीं है। लेकिन उसका एक नकारात्मक पक्ष भी है। आज मिथिला पेंटिंग के कलात्मक प्रभाव को लेकर सवाल उठ रहे हैं। मिथिला पेंटिंग की अपनी विद्याएं और परम्पराएं रही हैं। लेकिन आज मिथिला पेंटिंग के कलाकार जो कुछ चित्रित कर रहे हैं, वह कितना पारम्परिक और प्रासंगिक है? कला समालोचक मिथिला पेंटिंग में अंधानुकरण करने की प्रवृत्ति को लेकर भी चिंतित हैं। सचमुच, मिथिला पेंटिंग में आज वैसे कलाकारों की संख्या घटती जा रही है, जो बाज़ार के हर तरह के दबावों के बावजूद अपनी कला के प्रति निश्छल,समर्पित एवं निष्ठा-वान हों। यहीं पर बउवा देवी जैसी कलाकारों का महत्व दृष्टिगोचर होता है।

बउवा देवी का साधारण व्यक्तित्व और उनकी उपलब्धियां

भोली-भाली सूरत और ग्रामीण वेशभूषा वाली बउवा देवी से जो भी व्यक्ति मिला है, वह उनके आचरण,कुशलता और व्यक्तित्व की परिपूर्णता से निश्चय ही प्रभावित हुआ है। यहीं गुण उनकी मिथिला पेंटिंग में भी परिलक्षित होते हैं। 75 वर्ष की उम्र में भी वे कल्पना के साथ सृजन करती हैं, न की अनुकरण। उनकी प्रत्येक कृति विषय को मुखरित कर देती है और मानवीय एवं प्रेरणास्पद होती है। सहसा विश्वास नहीं होता की यह महिला 70 के दशक में पेरिस हो आई है, फ्रांस के चर्चित कला समीक्षक बिको की पुस्तक “द वुमन पेंटर्स ऑफ़ मिथिला” की पात्र हैं। 11 बार इनकी जापान यात्रा हो चुकी है, जर्मनी, लंदन और मॉरीशस से हो आई हैं- अपनी कला साधना को लेकर। पेरिस, बार्सिलोना,स्पेन की कला प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया है। इन्हें 1986 का राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री मिल चुका है। केवल इसी बल पर कि इनकी पेंटिंग की शैली मिथिला पेंटिंग के अन्य कलाकारों से बिलकुल भिन्न है। अब बउवा देवी सूर्यग्रहण,अर्द्धनारीश्वर, अमेरिका पर 9 \11 के विस्फोटक हमलों की ज़मीन को कैनवास पर उतार रही हैं। मानवी दुनिया को विनाश की नाग-कन्यायों से कैसे बचाया जाए, निर्माण और विनाश के कालप्रसूत जीवन-चक्र को कैसे आगे की गति पुनरोत्पादन से जोड़ा जाए- चित्रित कर रही हैं। यह सब ‘कोहबर’ से निकली मिथिला पेंटिंग का व्यापक संक्रांति से मुक्ति का बड़ा फलक है। आज भी सक्रिय हैं बउवा देवी। वे मिथिला पेंटिंग के अंतिम पंचम स्वर की धात्री देवी-शक्ति हैं। भरनी शैली में बनाये इनकी ज्यामितीय आकृतियों में ढले रंगों में मानव का अंतिम संगीत फुट पड़ा है। इन्होने सिद्ध किया है की कला की अंतिम परिणीति मानवता के संगीत में ही होती है।मधुबनी से 6 -7 मील की दूरी पर स्थित जितवारपुर गांव आज मिथिला पेंटिंग का गढ़ बन चुका है। यहाँ कमोवेश हर घर में लोग यह पेंटिंग आज बना रहे हैं। इस तरह मिथिला के सामंती समाज में यह स्त्रियों की आज़ादी और सामाजिक न्याय के सशक्तिकरण, समरसता का नया रास्ता खुल गया है।

कैसे की बउवा देवी ने सफर की शुरुआत

1966-67 के अकाल के समय अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड की तरफ से डिज़ाइनर श्री भास्कर कुलकर्णी को इस भिती चित्र को व्यावसायिक आयाम देने हेतु भेजा गया था। भास्कर कुलकर्णी जितवारपुर आए और इन्होने महिलाओं को कागज़ पर चित्रों को उकेरने के लिए प्रेरित किया। इसे आमदनी का स्त्रोत बनाया। इसी क्रम में बउवा देवी ने भिती चित्रों को कागज़ पर बनाना शुरू कर दिया। आज इसी रूप में यह लोककला बउवा देवी के माध्यम से कागज़ और कपडे पर तो हैं ही- स्टेशनों,संग्रहालयों की दीवारों पर वृहदाकार रूप में भी आकर्षण का केंद्र हैं।

70 के दशक में भास्कर कुलकर्णी ने बउवा देवी से 14 रू में कागज़ की तीन पेंटिंग को ख़रीदा था, जिसमें शंकर, काली, दुर्गा को उकेरा गया था। बउवा देवी ने इसके बाद अन्य धार्मिक मिथकों, लोक-प्रतीकों को समाहित किया। अंत में उतर आई ‘नाग नागिन’ की पेंटिंग पर ,जो इनके व्यक्तित्व और कलाधर्मिता से जुड़ गया है।नाग देवता इनके कुल देवता भी थे। इनका नाम है ‘कालिका-विषहारा’। बासुकी नाग की कहानी को बउवा आज भी चित्रित करती हैं। लौकिक ज्ञान और विश्वास ही आज तक कला के उद्गम रहे हैं। बउवा देवी ने नाग को विश्व मंच पर प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है। ये स्वयं आतंक से, व्यावसायिकता से, भौतिकता से मुक्ति के लिए विश्व की नाग-कन्या बन गई हैं, जिसका एक छोर विनाश के खात्मे का है तो दूसरा छोर नव सृजन का। इस तरह एक लोक गाथा बन गई हैं। इन्होंने वैयक्तिक और पौराणिक संदर्भों से विषय को उठाकर, उसे अपनी कला में मिलाकर अपने सम्पूर्ण जीवन को एक कला-दर्शन में बदल लिया है। उसके कई आयाम हैं, जो अनुसंधान का विषय है।

उनकी रचनाएँ

मिथिला कला इनके प्राणों में बसती है। इनकी अधिकांश रचनाएँ प्राकृतिक और लौकिक है- कल्पना का आधार उसमे शामिल है। कालिया मर्दन करते कृष्ण, राम-सीता विवाह यथार्थ और कल्पना का मेल है तो नाग नागिन कला की स्मृति, कहानियों के मर्म का उदघाटन। समय के साथ बदलाव की चित्रकारी है अमेरिका के वर्ल्ड सेन्टर पर हमले का चित्र। आसमान में विशालकाय नाग- फैलाये हुए फन- बेदनामयी नज़रें-दुख, अंधकार, रक्तपात। इस दुख-दर्द को बउवा जैसी कलाकार ही समझ सकती हैं। तभी तो बउवा देवी का जितवारपुर देश का एकमात्र ऐसा गाँव बन चुका है, जहाँ की तीन महिलाओं को पद्मश्री मिल चुका है। मिथिला पेंटिंग बउवा देवी का यशभाग लिख रही है।

दिल्ली की वो प्रदर्शनी

अतीत के पन्नों को पलटते हुए बउवा देवी कहती हैं- “जब मैं 15-16 वर्ष की थी, तभी सीता देवी,महासुंदरी देवी, जगदम्बा देवी और यमुना देवी के साथ दिल्ली स्थित प्रगति मैदान गई थी और एक माह तक वहाँ रहकर अपनी कला का प्रदर्शन किया था। उसके एवज में हमें प्रतिदिन 20 रूपया मानदेय के रूप में मिलता था, जो उस समय के हिसाब से बहुत ज़्यादा था। इसकी भनक चोरों को लग गई थी और एक रात वे चोरी की नीयत से हमारे कमरे में प्रवेश कर गए थे। लेकिन हो-हल्ला हो जाने के कारण उन्हें भागना पड़ा था। तब मैं बहुत डर गई थी और कई रात ठीक से नींद नहीं आई थी।”

उनकी व्यथाएँ

आजकल वे बेटे-बेटियों के साथ ज़्यादातर दिल्ली में रहती हैं लेकिन जितवारपुर गाँव इनसे छूटा नहीं है। उन्हें इस बात का कष्ट होता है कि आज के कलाकार व्यापारी ज़्यादा हो गए हैं। बउवा देवी में कला क्षमता का उद्वेग इस कोटि का नहीं है। उनकी इस कला कि व्यथा फूटती रहती है। इन्हें अफ़सोस है कि मिथिला पेंटिंग का कोई म्युजियम देश में नहीं है। यही इनका बड़ा सपना है। विदेश इन्हें नहीं भाता, स्वदेश ही सबकुछ है। जितवारपुर सबकुछ है, लोक से कला कि संवेदना मिलती है। वे समय निकालकर जितवारपुर आती हैं। उनकी दूसरी व्यथा है कि मिथिला पेंटिंग में “मास प्रोडक्शन” बढ़ा है लेकिन उसमे दलाल वर्ग घुस गया है। कलाकारों को उनकी कला का मेहनताना नहीं मिलता। पुरस्कारों के लिए भी जोड़-तोड़ होता है। उनकी यह व्यथा अपनी जगह पर है। लेकिन जब पद्मश्री पुरस्कार बउवा देवी को मिलता है तो पुरस्कार कि गरिमा बढ़ जाती है।

उनकी कोशिश-विरासत की रक्षा

आज भी बउवा देवी में कुछ नया करने का जोश है। आज कि पीढ़ी को कुछ देने का जज़्बा। विरासत कि रक्षा। कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी का अंग बन जाए- इनकी कोशिश है। किसी विषय को ऊंचाई पर पहुंचा देना। एक ग्रामीण संस्कारों वाली महिला इतना कुछ सोचे-समझे-करे, यह अप्रतिम है। इनकी सामान्यता ऐसी कि इन्हें देखकर कोई सोच नहीं सकता कि ये इतनी बड़ी कलाकार हैं। इन्हें पद्मश्री मिलने कि घोषणा हुई तो बहुतों ने इनके साथ सेल्फी ली। सेल्फी क्या होती है-तब ये जानती भी नहीं थीं। बिहार का नाम इन्होंने ऊँचा किया है-उसे विश्व स्तर पर पहुँचाया है। अब एक ही काम है इनका- कला को लोगों के मन से जोड़ना। किसी पुरस्कार का ख्याल नहीं रहा-वह स्वयं आया-देर सबेर आया। पुरस्कार आया तो कला को आया, लोक मानस कि विंबता को आया। ये मानती हैं कि मिथिला पेंटिंग का भविष्य बहुत उज्जवल है। यह आय का भी जरिया है। महिलाओं में इसके सीखने कि चाह होनी चाहिए। कलाकार को अवसर मुहैया कराना चाहिए।

लाभ शार्ट-कट से नहीं मिलता

वे कहती हैं कि पेंटिंग बनाती हूं तो इससे आनंद का अनुभव करती हूँ। ईश्वर की यह कृपा है। लोगों को मेरी कला पसंद आ रही है तो यह मिथिला कला की शान और अवदान है। माध्यम होता है व्यक्ति। लाभ शार्ट कट से नहीं मिलता। महत्वपूर्ण, दीर्घायु होने के लिए कला साधना मांगती है। एक आदर्श होना चाहिए की हम बड़ों का सम्मान करें और छोटों को सहयोग दे। इसी से कला की जड़ें जमती है। परंपरा भी इसी से बचती है।

जड़ों को न भूलें

माँ चंद्रकला देवी की छाया में ही इन्होंने पेंटिंग की शुरुआत की थी। इनके निर्माण में उनका योगदान अन्यतम है। शादी के बाद जब ये जितवारपुर आई तब इनकी कला को और विस्तार मिला। 2015 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब जर्मनी यात्रा पर गए थे तो बर्लिन के मेयर स्टीफन शोस्तक ने उन्हें बउवा देवी की पेंटिंग उपहार में दी। यही उनकी सार्थकता है। कलाकार को दूसरा कुछ भी नहीं चाहिए। उनकी पहली पेंटिंग डेढ़ रू में बिकी थी- आज लाखों में बिकती है- करोड़ों आँखों द्वारा सराही जाती है। यही बउवा देवी की उपलब्धि है। ईमानदारी और निष्ठा होनी चाहिए कला के प्रति। पैसे के पीछे भाग रही है दुनिया तो अपने जड़ों को भूल रही है। इसे बचाना है। कलाकार का जीवन सबसे पवित्र और महिमामय है। बउवा देवी के व्यक्तित्व से हमें यही सीख मिलती है।

Pride of Mithila Painting
BAUA DEVI
Baua Devi is a Mithila painting artist from Jitwarpur village of Madhubani District in Bihar. Mithila painting is an ancient folk art that originated in the region. It is recognized as a series of complex geometric and linear patterns traced on the walls of a house’s inner chambers. It was later transferred to handmade paper and canvases.[1] Baua Devi won the National Award in 1984 and received the Padma Shri in 2017. (WIKIPEDIA)
World Milk Day 2019

World Milk Day “Drink Milk: Today & Everyday”

World Milk Day “Drink Milk: Today & Everyday”

On June 1, World Milk Day is celebrated all over the world to mark the contributions of the dairy sector to economic development, farmers, and also spread awareness about the consumption of Milk and benefits of its nutrition. The day brings our attention to recognise the importance of this global food and how it is such a vital part of our diet and has been a part of our nutrition since time immemorial. Rich in nutrients, milk in its various forms has a long, long history…

  • The “Agricultural Revolution” that occured around 10000 BC, resulted in changing societies from nomadic tribes to those who settled in communities and the use of by-products such as milk came with domestication of animals.
  • In ancient Egypt, milk and other dairy products were reserved for royalty, priests and the very wealthy.
  • By the 5th century AD, cows and sheep in Europe were prized for their milk.
  • By the 14th century, cow’s milk became more popular than sheep’s milk.
  • European dairy cows were brought to North America in the early 1600s.
  • Louis Pasteur, a French microbiologist, conducted the first pasteurization tests in 1862. Pasteur is credited with revolutionizing the safety of milk and, in turn, the ability to store and distribute milk well beyond the farm. Commercial pasteurization machines were introduced in 1895.
  • In 1884, the first milk bottle was invented in New York state.
  • In the 1930s, milk cans were replaced with large on-farm storage tanks, and plastic coated paper milk cartons were invented, which allowed for wider distribution of fresh milk.
A natural product for all occasions with multi nutrition; the list below explains how and what.

Calcium: Aids in the formation and maintenance of strong bones and healthy teeth.
Vitamin A: Aids bone and tooth development. Also aids in the maintenance of night vision and healthy skin.
Vitamin B12: Aids in red blood cell formation.
Vitamin B6: Factor in the conversion of food into energy and tissue formation, including bones.
Protein: Helps build and repair body tissues, including muscles and bones, and plays a role in the creation of antibodies which fight infection.
Magnesium: Factor in bone and teeth health, conversion of food into energy and tissue formation.
Phosphorus: Factor in the formation and maintenance of strong bones and healthy teeth. Potassium: Aids in the correct functioning of nerves and muscles.
Zinc: Factor in tissue formation, including bones, and conversion of food into energy.
Selenium: Factor in the correct functioning of the immune system, due to its antioxidant effect.
Riboflavin: Factor in the conversion of food into energy and tissue formation.
Niacin: Aids in normal growth, and is a factor in the conversion of food into energy and tissue formation, including bones.
Thiamine: Releases energy from carbohydrate and aids normal growth.
Pantothenic acid: Factor in the conversion of food into energy and tissue formation, including bones.
Vitamin D: Enhances calcium and phosphorus absorption, on which strong bones and teeth depend.

World Milk Day “Drink Milk: Today & Everyday”

India: A revolution that designed a new and healthy India

India’s White Revolution, which has quietly swept the country during the past few decades, deserves attention that holds the promise of raising the nutritional status. The main architect of this successful project was Dr. Verghese Kurien, also called the father of the White Revolution. He played a great role in the transformation of India from a milk deficient nation into the world’s largest milk producers. Milk has become India’s most important farm commodity and the achievements have been realised against great odds.

A global food for the global economy – Connecting humanity

World milk production is heading for an increase in 2019 and is predicted to expand by 1.9 per cent to 859 million tonnes. It is a well-known fact that the dairy industry actively contributes to the economies of a number of communities, regions and countries. Dairy exports by India, which more than doubled in 2018, are anticipated to make further inroads this year and this dynamic global industry is forecast to continue in the long-term.

A food without grains that deliver multiple gains: sustainability, economic development, livelihoods and nutrition

While people naturally know about dairy’s nourishing nutrition, the dairy sector brings society, sustainability and world nutrition together. This sector contributes more than just tasty goodness to the world’s population. Nearly one billion people globally earn their livelihood through the dairy sector. It sustains and revitalizes rural communities in all corners of the world. Dairying has an active role in alleviating poverty and provide employment, not only to people who work on dairy farms or in dairy plants, but also to the whole sector, from upstream to downstream.

Animals that give milk: It has to be

It’s good that every morning we serve our children with a glass of milk, at that moment we only care about our needs. But for that the cows need not to be commercialize and forced exploitation upon. They exist in our ecosystem and their lives matter. When humans drink cow’s milk they imbibe the responsibility of its calves as well. So let’s choose what is right.

World No Tobacco Day 2019

World No Tobacco Day 2019 – we must become designer of our life and not our Death

World No Tobacco Day 2019

World No Tobacco Day: रिपोर्ट्स के मुताबिक हर साल करीब 70 लाख लोग तंबाकू के सेवन की वजह से मर जाते हैं।

स्मोकिंग कोई बीमारी नहीं है, जिसके लिए दवाई की जरुरत पड़े। स्मोकिंग छोड़ने के लिए मजबूत इरादे होने चाहिए। एक रिपोर्ट के मुताबिक 70 लाख लोग हर साल पूरे वर्ल्ड में तम्बाकू के कारण मर जाते हैं। अपने आपको सेहतमंद रखने के लिए जरुरी है की आज के दिन (वर्ल्ड नो तंबाकू डे) आप तंबाकू का सेवन छोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। हम आपको कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप आसानी से तंबाकू का सेवन छोड़ सकते हैं।

ज्यादा से ज्यादा लिक्विड लें- तंबाकू का सेवन छोड़ने से तीन दिन पहले तक खूब पानी और जूस का सेवन करें, जिससे शरीर में मौजूद ज्यातर निकोटीन बाहर निकल जाए। ग्रीन टी काफी लाभदायक है, ब्लैक टी और कॉफी को कुछ दिनों के लिए अवॉयड करें।

खाने के बाद की आदतों में बदलाव- खाने के बाद कुछ लोगों को सिगरेट पीने या तंबाकू चबाने की आदत होती है, उन्हें ये लगता है कि इससे खाना पचने में आसानी होती है। उसकी जगह कोई फ्रूट, चॉकलेट या कोई च्युइंगम खा सकते हैं।

अपना ध्यान बटाएं- अगर स्मोकिंग करने की इच्छा होती है इससे पहले आप उस इच्छा को बढ़ने दे अपना ध्यान कहीं और लगाएं। टीवी देखें, बर्तन धो लें, शावर लें या किसी फ्रेंड से बात कर लें जब तक स्मोकिंग का ख्याल नहीं चला जाता।

खुद को इनाम दें- इस तरह खुद पर कंट्रोल करने के लिए अपने को इनाम दें, जिससे इसी तरह करते रहने के लिए प्रेरणा मिलेगी।

ब्रश कर लें- जब भी स्मोकिंग करने की इच्छा तेज हो तो ब्रश करना अच्छा रहता है, इससे स्मोकिंग के लिए हो रही क्रेविंग खत्म हो जाती है। पुदीने की पत्तियां चबा लेना भी अच्छा उपाय है।

गहरी सांस लें- रोजाना गहरी सांस लेने की आदत डालें इससे अनवांटेड क्रेविंग्स नहीं होंगी।

जिनसेंग का प्रयोग करें- अपने नाश्ते में जिनसेंग पाउडर का इस्तेमाल करें। यह डोपामाइन को कम करने में मदद करता है। डोपामाइन निकोटीन में सबसे ज्यादा पाया जाता है।

रबर का धागा हाथ में पहने- जब भी स्मोकिंग के लिए क्रेविंग हो तो उस धागे को खींच दें इससे आपका ध्यान बंट जायेगा और हमेशा आपको याद दिलाएगा की आप स्मोकिंग छोड़ रहे हैं।

वर्क आउट करें- जब भी स्मोकिंग करने का मन हो तो जल्दी से 5-10 पुश-अप्स कर लें। इससे आपका दिमाग और बॉडी दोनों का ध्यान स्मोकिंग से हट जाएगा।

मेडिटेशन- दिन में 10-15 मिनट मेडिटेशन करने से आप आपकी इच्छाओं पर काबू पाना सीख सकते हैं जिससे आपको स्मोकिंग छोड़ने में आसानी होगी डैड थिंक लैब्स आज इस महत्वपूर्ण दिन को जागरूकता की नयी इबारत लिखते हुए पूरे मानव प्रजाति से इसमें शामिल होकर अपनी भागीदरी सुनिश्चित करने का आह्वाहन करती है।

“What we can or cannot do, what we consider possible or impossible, is rarely a function of our true capability. It is more likely a function of our beliefs about who we are.”
World No Tobacco Day
IPL

IPL( इंडियन प्रीमियर लीग) भारतीय अर्थव्यवस्था का नया डिज़ाइन परिचालक “

IPL 2019 Highlights: जानिए कैसे बना रहा है डिज़ाइन “IPL” को और भी महत्वपूर्ण | IPL (Indian Premiere League) भारतीय अर्थव्यवस्था का नया डिज़ाइन परिचालक "

भारत हमेशा से ही एक विकासोन्मुखी देश रहा है, दौर चाहे किसी चीज का हो हमेशा ही देश ने अपना परिचय एक बेहतरीन और जिज्ञासु  बालक की तरह दिया है।

देश की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों से बहुत नए आयाम लिख रहा है, और इसका सबसे बड़ा उदाहरण क्रिकेट है, जिसको सीधा जानने के लिए फटाफट क्रिकेट यानि IPL Highlights को देख कर समझा जा सकता है । कहा जाता है की भारत में दो चीजों का दौर हमेशा ही चलेगा एक शादियों का और दूसरा क्रिकेट का। आज क्रिकेट की लोकप्रियता का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है की ये हर उम्र के लोगो का एक पूरे दिन का खास मनोरंजन बनता गया है।

एक खेल जो पूरी दुनिया एक साथ खेलती है |

ये सिर्फ कुछ टीमों का खेल नहीं वास्तव में इसमें पूरा भारत नहीं बल्कि पूरी दुनिया खेल रही होती है|  इसमें इनके जोश और उत्साह की कोई सीमा ही नहीं होती। इसके एक नए स्वरूप को हम इस तरीके से समझ सकते हैं की , ’IPL’ ने  भारत की अर्थव्यवस्था एक नया अध्याय ही लिख दिया है, और आज ‘IPL’ देश के सबसे बड़े बिज़नेस का केंद्र बनता जा रहा है  IPL दुनिया में सबसे ज्यादा -भाग लिया जाने वाला क्रिकेट लीग है और सभी खेल लीग के बीच छठे स्थान पर है।  

IPL

IPL 2019 Highlights के अनुसार क्रिकेट का यह प्रारूप, एक डिज़ाइन परिचालक के रूप में पूर्णतः विकसित होता जा रहा है |

क्या आपने मंदिरों, समाज द्वारा आयोजित त्योहारों और राजाओं द्वारा आयोजित युगल और खेल के बारे में सुना है? यह सभी समाज के अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं। स्वस्थ वातावरण में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एकजुट होने वाले लोग मंदिर के अधिकारियों के लिए एक महान राजस्व उत्पादक हैं, और इसके अलावा वे घटना के आसपास के नागरिकों के बीच अच्छी इच्छा और सद्भाव का प्रचार करते हैं। ओलंपिक की होस्टिंग जीडीपी को बहुत उत्प्रेरित करता है क्योंकि यह खर्च सरकार और जनता दोनों के हित में संलग्न हैं।

खेल जगत की एक ऐसी ‘डिज़ाइन स्ट्रेटेजी’ जिसका असर अर्थव्यवस्था में वैश्विक स्तर पर है |

IPL Highlights Season 2015 के डाटा पर ध्यान देने पर समझ में आयेगा की कैसे आईपीएल ने भारत के जी डी पी और अर्थव्यवस्था में 11.5 लाख ₹ (अमेरिका $ 182 मिलियन) का योगदान दिया है और अपने आप में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) को जोड़ने वाले बहुविध व्यवसायों में कारोबार करता है, अन्य संबद्ध क्षेत्रों जैसे यात्रा, भोजन, दूरसंचार आदि में एक मंथन का विषय है। खिलाड़ी और ईवेंट आयोजक एकमात्र ऐसे लोग नहीं हैं जिन्हें आई पी एल का सीधा लाभ मिलता है। कई अन्य व्यवसाय और सेवाएं हैं जो आई पी एल के कारण बिक्री में वृद्धि देखते हैं।

इस महोत्सव में देश दुनिया की बड़ी से बड़ी कम्पनियाँ अपने ब्रांड को प्रोमोट करना चाहती है |

IPL एक ऐसा मंच है जहाँ एक महीने तक लगभग हर घंटे हम IPL के खबरों से जुडे होते हैं, और खेल के करीब चार घन्टे के अंतराल में खुद के ब्रांड को प्रमोट करने के अनगिनत अवसर होते हैं | तो सोचिये ऐसे अवसर को कौन भला छोड़ना चाहेगा | ग़ौरतलब यह है की एक एक सेकंड की कीमत लाखों में होती है जिसपर खर्च करने के लिए हर कोई उतना ही दम लगा रहा होता है | यह मंच एक वैश्विक मंच है जहाँ पर पूरी दुनिया एक साथ एक ही एक ही तस्वीर एवं एक ही चल-चित्र देख रही होती है | इस खेल के प्रसारण को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है की हर बडे बिज़नेस ब्रांड को अपने ओर आकर्षित करता है, और जहाँ इस स्तर पर अर्थ व्यवस्था का संचालन हो रहा हो तो इसका जीडीपी पर एक सकारात्मक असर क्यों न हो ?

IPL  के इस खेल महोत्सव में इस साल करीब बडे एवं छोटे कंपनियों को मिलाकर लगभग 30 प्रायोजक को देखा गया | इस संख्या में हर साल बढ़ोतरी देखी गयी है| देश के सबसे मोबाइल कंपनी से लेकर पान मसाला तक की कंपनियों ने हिस्सा लिया |

IPL sponsors

ब्रांडिंग एवं प्रचार प्रसार के अलग अलग माध्यम का एक प्रोफेशनल डिजाईन एवं रचनात्मक प्रणाली का महत्व

IPL एक ऐसा महोत्सव है जो दो महीने तक पूरी दुनिया को एक ही रंग में रंग देने का भाव प्रकट करती है | यह खेल का वह त्यौहार है जहाँ हर कोई अपने ऊपर तरह तरह के रंगों में रंग कर भी एक ही एक बडे मंच का एक रंग बना रहता है | रंगों का ऐसा इस्तेमाल शायद ही एक साथ किसी फैशन शो में देखने का मिलता है | डिज़ाइन एक ऐसा मंत्र है जो हर टीम हर इंसान इसको जप रहा होता है| हर कोई एक दूसरे से ज्यादा महत्वपूर्ण दिखाना चाहता है | रंग चाहे जर्सी का हो, झंडे का हो, हर रंग अपने आप में स्पेशल होता है | हर टीम की अपनी  एक पहचान है जहाँ उनको रंगों से बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है तथा सबको एक दूसरे से अलग करते हुए सबको एक ही मंच पर रखता है | यहाँ तक की दर्शक भी खुद को तरह तरह से सजाते हुए अपने टीम के सपोर्ट में दिख जाते हैं | क्रिकेट के इस महापर्व में रचनात्मकता को बहुत महत्ता दी जाती है एवं हर साल रचनात्मकता को एक नया आयाम भी मिलता है| यह त्यौहार टेक्सटाइल से लेकर एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री तक को बढ़ावा देती नज़र आती है|

तेज़ रफ़्तार से बढते हुए युग में आईपीएल जैसे खेल की एक अलग पहचान है

इस खेल के नियम एवं शर्तों की रचना को देखा जाए तो आज की इस भाग दौड़ की दुनिया के लिए बेहद ही सटीक है| इसके प्रसारण के समय से लेकर खेल की समय सीमा तक को इस तरह डिज़ाइन किया गया है की हर तरह के उम्र एवं पेशा के दर्शक को अपना अभिन्न हिस्सा बना लेता है | इस पूरे खेल को लोग अलग अलग माध्यम से भी अपना कमाई का ज़रिया बना लेते हैं| इसलिए यह त्यौहार हर किसी के लिए कुछ न कुछ लेकर आता है और इसने भारत को विश्व के मानचित्र पर लोगों के बीच एक नयी पहचान दिला दी है| दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट महोत्सव हर साल मनाता है, जिसका इंतज़ार पूरे साल तक पूरी दुनिया करती है |

Budha

बुद्ध पूर्णिमा….एक संपूर्ण डिजाईन मानव को मानवता के माला में पिरोने की

आईये जाने कैसे हैं भगवान बुद्ध….. धर्मक्रांती के डिज़ाइनर - उनकी जीवनी, बौद्ध धर्म की उपयोगिता और संदेश ___ डैड थिंक लैब्स के साथ

केवल धर्म नहीं - ‘बौद्ध धर्म’ अपितु यह एक प्राकृतिक डिज़ाइन प्रक्रिया है ,जो एक जीवंत आत्मा को परमात्मा से परिचय और मिलने का मार्ग भी प्रसस्त करता है ….

बुद्ध पूर्णिमा की महत्ता ….

‘बुद्ध जयंती’ वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। धीरे धीरे यह बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के अलावा मानवता के लिए एक प्रमुख त्यौहार बन गया है। मान्यताओं के आधार पर  पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ‘बुद्धत्व’ की प्राप्ति हुई थी। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया।

आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य  के माध्यम से इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र, अन्न  दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होने की आशा होती है |

इतिहास गवाह है; महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती एवं उनका लोकहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी, सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदैशिक होता है|  उनका जीवन एक प्रेरणाश्रोत बन कर युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता रहेगा। एक प्रकाशस्तंभ के स्वर्णिम प्रतीक, गौतम बुद्ध हमारे जीवन के उन मूल्यों के रचईता हैं जिनको पाने के लिए लोगों को बार बार जन्म लेना पड़ेगा

बुद्ध पूर्णिमा….मानव को मानवता रूपी माला में पिरोने की एक आध्यात्मिक एवं स्वयं संयोजित डिज़ाइन प्रक्रिया

संसार अपने आप में प्रकृति का दिया हुआ एक स्वर्ग है, बस जरुरत है तो मानव के मानवता, करुणा,  प्रेम , शांति, संवेदना और ज्ञान से ओत्प्रेत हो जाने की | प्रकृति ने इस संसार में असंख्य जीवों को बनाया और उस सर्वशक्तिमान ने उसमे चेतना डालते हुए  एक नया रूप देकर सबके सह मौजूदगी के लिए श्रृष्टि की रचनात्मक व्यवस्था को डिज़ाइन किया | समाज कल्याण के भाव से प्रेरित महात्मा बुद्ध ने संन्यासी बनकर भी अपने आप को आत्मा और परमात्मा के निरर्थक विवादों से दूर रखा।  उनके उपदेश मानव के लिए दुःख एवं पीड़ा से मुक्ति के माध्यम बनते हुए सामाजिक एवं सांसारिक समस्याओं के समाधान के प्रेरक बने| उनकी सादगी, जीवन को सुन्दर बनाने एवं माननीय मूल्यों को लोक-चित्त में संचारित करने में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। यही कारण है कि उनकी बात लोगों की समझ में सहज रूप से ही आने लगी जब महात्मा बुद्ध ने मध्यममार्ग अपनाते हुए अहिंसा युक्त दस शीलों का प्रचार किया | उन्होंने पुरोहितवाद पर करारा प्रहार किया और व्यक्ति के महत्त्व को प्रतिष्ठित किया | उनका मानना था कि मनुष्य यदि अपनी तृष्णाओं पर विजय प्राप्त कर ले तो वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है| उनकी मान्यताओं पर गौर किया जाए तो एक विशिष्ट एवं रचनात्मक डिजाईन  प्रणाली का भाव नज़र आयेगा | जिस प्रकार डिजाईन मानव के किसी भी समस्याओं को हल करके आसान बनाता है, ठीक वैसे  हीं ,बौद्ध दर्शन भी हमारे पूरे जीवन और जीवन की विसंगतियों को सरल बनाता है I अगर आज सिर्फ मानवता को  डिज़ाइन के अस्तित्व के मूल्यों के आधार पर व्यवस्थित किया जाये तो पूरे श्रृष्टि को नुकसान पहुंचा जाने वाली  बुराईयाँ दूर हो जायेंगी I
bodhi tree

चेतन और अचेतन मन के बीच की दूरी और उसका ज्ञान हो जाये तो विश्व का कल्याण हो जायेगा

गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया साथ ही  काफी कुशलता से बौद्ध भिक्षुओं को संगठित किया और लोकतांत्रिक रूप में उनमें एकता की भावना का विकास किया। इस धर्म का अहिंसा एवं करुणा का सिद्धांत इतने प्रभावशाली  थे , कि सम्राट अशोक ने दो वर्ष बाद इससे प्रभावित होकर बौद्ध मत को स्वीकार किया और युद्धों पर रोक लगा दी। इस प्रकार बौद्ध मत देश की सीमाएँ लाँघ कर विश्व के कोने-कोने तक अपनी ज्योति फैलाने लगा। आज भी इस धर्म की मानवतावादी, बुद्धिवादी और जनवादी परिकल्पनाओं को नकारा नहीं जा सकता और इनके माध्यम से भेद भावों से भरी व्यवस्था पर ज़ोरदार प्रहार किया जा सकता है। यही धर्म आज भी दुःखी, पीड़ित एवं अशांत मानवता को शांति प्रदान कर सकता है। ऊँच-नीच, भेदभाव, जातिवाद पर प्रहार करते हुए यह लोगों के मन में धार्मिक एकता का विकास कर रहा है। विश्व शांति एवं परस्पर भाईचारे का वातावरण निर्मित करके कला, साहित्य और संस्कृति के विकास के मार्ग को प्रशस्त करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

खूबसूरत और वैश्विक समाज की डिज़ाइनिंग की परिकल्पना जहाँ सभी एक दूसरे से प्रेम और भाईचारे के बंधन से जुड़े हों I

वास्तव में देखा जाए तो राज-शासन और धर्म-शासन दोनों का ही मुख्य उद्देश्य जनता को सन्मार्ग पर ले जाना है। परन्तु राज-शासन के अधिनायक स्वयं मोहमाया ग्रस्त प्राणी होते हैं, अतः वे समाज सुधार के कार्य में पूर्णतया सफल नहीं हो पाते। भला, जो जिस चीज को अपने हृदयतल में से नहीं मिटा सकता, वह दूसरे हजारों हृदयों से उसे कैसे मिटा सकता है? राज-शासन की आधारशिला प्रेम, स्नेह एवं सद्भाव की भूमि पर नहीं रखी जाती है, वह रखी जाती है, प्रायः भय, आतंक और दमन की नींव पर। यही कारण है कि राज-शासन प्रजा में न्याय, नीति और शांति की रक्षा करता हुआ भी अधिक स्थायी व्यवस्था कायम नहीं कर सकता। जबकि धर्म-शासन परस्पर के प्रेम और सद्भाव पर कायम होता है, फलतः वह सत्य-पथ प्रदर्शन के द्वारा मूलतः समाज का हृदय परिवर्तन करता है और सब ओर से पापाचार को हटाकर स्थायी न्याय, नीति तथा शांति की स्थापना करता है।     

बुद्ध अन्ततोगत्वा इसी निर्णय पर पहुंचे कि भारत का यह दुःसाध्य रोग साधारण राजनीतिक हलचलों से दूर होने वाला नहीं है। इसके लिए तो सारा जीवन ही उत्सर्ग करना पड़ेगा, क्षुद्र परिवार का मोह छोड़ कर ‘विश्व-परिवार’ का आदर्श अपनाना होगा। राजकीय वेशभूषा से सुसज्जित होकर साधारण जनता में घुला-मिला नहीं जा सकता। वहां तक पहुंचने के लिए तो ऐच्छिक लघुत्व स्वीकार करना होगा, अर्थात् भिक्षुत्व स्वीकार करना होगा। ताकि लोगो की आकांक्षाओं को समझते हुए एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जा सके, जहाँ समानता, दया , प्रेम और सद्भाव हो।

Golden Buddha

मानवता जो की डिज़ाइनिंग का सबसे बेहतरीन पाठ है महात्मा बुद्ध से सीखने को I

मानवता को बुद्ध की सबसे बड़ी देन है भेदभाव को समाप्त करना।  मानवता ही मानव होने का सबसे बड़ा प्रमाण है लेकिन आज भी बहुत सरे लोग अज्ञानता वश या अभिमान में अपने आप को सरलता से जटिलता की तरफ धकेल रहे हैं I यह एक विडम्बना ही है कि बुद्ध की इस धरती पर आज तक छूआछूत, भेदभाव किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। उस समय तो समाज छूआछूत के कारण अलग-अलग वर्गों में विभाजित था। बौद्ध धर्म ने सबको समान मान कर आपसी एकता की बात की तो बड़ी संख्या में लोग बौद्ध मत के अनुयायी बनने लगे। कुछ दशक पूर्व डाक्टर भीमराव आम्बेडकर ने भारी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध मत को अंगीकार किया ताकि हिन्दू समाज में उन्हें बराबरी का स्थान प्राप्त हो सके। बौद्ध मत के समानता के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप देना आज भी बहुत आवश्यक है। मूलतः बौद्ध मत हिन्दू धर्म के अनुरूप ही रहा और हिन्दू धर्म के भीतर ही रह कर महात्मा बुद्ध ने एक क्रांतिकारी और सुधारवादी आन्दोलन चलाया। भगवान बुद्ध ने कहा की अगर हम मानवता के इस संरचना को समझ ले और इसमें अमल कर लें तो समस्त विश्व का कल्याण हो जायेगा ।

डैड थिंक लैब्स आज इस पावन दिवस पर समस्त जीव-मात्र को ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट संरचना मानते हुए इसे मानवता के लिए सबसे बड़ा उपहार बता रहा है साथ ही यह भी कहना चाह रहा है की यह वास्तविकता में सबसे बड़ा डिज़ाइन है ।

एक ऐसा विश्व जहाँ हर मानव अपने शरीर , मन और आत्मा से एक हो उसपर उनका नियंत्रण हो ।

जब एक सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध तक की यात्रा मानव मन पर विजय प्राप्त कर के पूरी की जा सकती है तो फिर हम आप भी उनके बताए नियमों और सिद्धांतों को पाकर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं ।बुद्ध का लोगों तक जाने तक की यात्रा आसान  नहीं थी ,अपने जीवन के सारे अनुभवों को बांटने, और कठोर तप करने से पहले स्वयं को अकेला बनाया ,खुद को तपा कर जीवन का सच जाना I उन्होंने यह संदेश दिया कि अगर हमारे भीतर का संसार स्वच्छ होगा तभी हम अपने आसपास भी सफाई रख पाएंगे , बुरा ना  देखना, ना सुनना , ना बोलना यही ख़ालीपन का सन्देश सुख, शांति, समाधी का मार्ग है I अपने दीपक स्वयं बनने की बात और सबसे पहले वर्तमान में जीने की बात कही क्योंकि अगर मानव मन सुख-दुःख, हर्ष-विषाद से घीरे रहना, कल की चिंता में झुलसना, तनाव का भार  ढ़ोना होगा तो ऐसी स्थिति में भला मन कब कैसे शांत हो सकता है ? ना अतीत की स्मृति ना भविष्य की चिंता यही मूल मंत्र है I आज जरुरत है, उन्नत एवं संतुलित समाज निर्माण के लिए महात्मा के उपदेशो के जीवन में ढालने की , ऐसा करके ही समाज को संतुलित बना सकेंगे I बुद्ध को केवल उपदेशो तक ही सिमित न रखे बल्कि बुद्ध को जीवन का हिस्सा बनाये अपना आईना बनाये जिसमे देखकर हर इंसान कहे की बुद्ध ही सार्थक जीवन का सबसे बड़ा उदाहरण है I

मदर्स डे -“दुनिया में जब भी कोई बात होगी, बस और बस माँ से ही शुरुआत होगी”

12 मई 2019 “मदर्स डे”

आज मदर्स डे के इस पावन अवसर पर DAD Think Labs उन करोड़ो माँओं को कोटि- कोटि शुभकामनाएं दे रहा है और अपनी बात मुनवर राणा की इन पंक्तिओं से करना चाहता है ….” लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती ,बस एक माँ है जो कभी मुझसे खफा नहीं होती”

माँ एक सम्पूर्ण दुनिया है जो हम सबमे काफी गहराई तक समाया एक एहसास है I

माँ शब्द भले ही बोलने में बहुत छोटा हो ऐसा लगता है बोलते ही खत्म हो जाये पर इसकी व्यापकता बहुत विशाल है, जिसको समझने के लिए शायद पूरी जिंदगी भी कम पड जाये, क्यूंकि एक बच्चे के जन्म लेते ही माँ की सम्पूर्णता पूरी होती है, और उस बच्चे को उसकी पहली और सबसे बड़ी दुनिया का बोध होता हैI एक बालक जब जन्म लेता है तो उसके लिए उसकी दुनिया बिल्कुल नयी होती है पर उसका रोना तभी शांत होता है जब माँ का पहला स्पर्श होता है, उसकी भूख तभी शांत होता है जब दूध का पहला घूँट उसके पेट में जाता है, उसे ये एहसास होने में तनिक भी देर नहीं होता की जिसने उसे जन्म दिया है वो है ना, उसका ख़याल रखेगी, माँ एक खुले आसमान के निचे छत की तरह है जो धूप ,बरसात ,गर्मी ,सर्दी और दुनिया की हर बला से सबसे पहले निपटेगी फिर अपने आप को देखेगी ,एक माँ चाहे कितनी भी भूखी क्यों न हो पर सबसे पहले अपने औलाद को निवाला खिला कर ही कुछ खायेगी, माँ के इसी त्याग और ममता के कारण हम उसे भगवान् के समान मानते हैं। आज मातृ दिवस या मदर्स डे के पावन अवसर पर DAD Think Labs उन असंख्य ममता की देवियों को नमन करता है और एक बेहतरीन और विकासोन्मुख भारत बनाने में उनकी सहभागिता के लिए पूरे दिल से नमन और आभार व्यक्त करता है.

आज DAD Think Labs माँ को ब्रम्हांड का सबसे बड़े पालनकर्ता , चित्रकार, डिज़ाइनर और रचयिता से सबको अवगत करना चाहता है। थॉमस एडिसन जब छोटे थे तो पढ़ने में बहुत कमजोर थे हमेशा उलटे सीधे काम किया करते थे, पर उनकी माँ को पता था कि उनके बेटे का विवेक और बौद्धिक क्षमता और बच्चो जैसा नहीं है। उनके जन्म से पर माँ ने इससे हार नहीं मानी और प्रण किया की चाहे जो भी हो पर अपने बेटे को दुनिया से लड़ने के लिए तैयार करेगी। थॉमस एडिसन जब स्कूल जाने लगे तो उनके टीचर उन्हें रोज़ डांटा करते थे कि अगर तुमने अपना पढाई का स्तर नहीं सुधारा तो हम तुम्हे स्कूल से निकल देंगे और आख़िरकार हुआ भी वैसा ही उनके टीचर ने उनके रिपोर्ट कार्ड पर लिखा की आपका बच्चा अभी इस कक्षा और हमारी पढ़ाई के लायक नहीं है। उस नन्हे थॉमस एडिसन ने माँ को रिपोर्ट कार्ड दिखाया और पूछा की इसमें क्या लिखा है ? उसमे लिखा था कि आपका बच्चे का दिमागी विकास अभी उतना नहीं और वो क्लास में फेल हो रहा है इसलिए हम उसका नाम काट रहे हैं आप इसे कहीं और पढाईये , माँ ने जवाब दिया की इसमें लिखा है की आपका बच्चा इतना विलक्षण है की हमारा ये संसथान इसके अद्वितीय विलक्षण के लायक नहीं है इसलिए आप इसे किसी और बड़े स्कूल में पढाईये , माँ ने हार नहीं मानी और अपने घर पे ही पढ़ाना शुरू किया। माँ की मृत्यु के बाद जब वो एक बहुत बड़े वैज्ञानिक बन गए तो उन्होंने लिखा की “ By a hero mother, became the genius of the century.” तो एडिसन ने दुनिया को बता दिया की एक माँ ही है, जो बिना हारे बिना रुके इस दुनिया की बात को साबित कर सकती है उसकी शिक्षा में वो दम है जो एडिसन को महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन बना सकती है।

आज इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई इतना व्यस्त है, कि किसी के पास एक पल का समय नहीं की वो माँ से ये तो पूछे की देखभाल में कोई कमी तो नही है, मुझसे जाने अनजाने में कोई गलती तो नहीं हो गयी है।

माँ, अम्मा, या मम्मी नाम से पुकारिये ममता का एहसास सबमे बराबर ही होगा। आज मातृ दिवस जो की हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है, इसकी शुरुआत एक अमरीकी सामाजिक कार्यकर्ता ऐना जार्विस जिनकी माँ ने अक्सर इस तरह की छुट्टी की स्थापना की इच्छा व्यक्त की थी, और अपनी माँ की मृत्यु के बाद, जार्विस ने स्मरणोत्सव के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया और 1908 में यह पहली बार मनाया गया। 1 मई 1914 को बाकायदा एक कानून बनाकर अमरीका में लागु हुआ और बाद में फिर पूरे विश्व में मदर्स डे मनाया जाने लगा।

Mothers day with dad think lab

माँ यानि हमारी जिंदगी का आधार,हमारी सबसे बड़ी ताक़त , मुश्किल चाहे छोटी हो या बड़ी जुबान पर सबसे पहले माँ ही आता है। यकीन भी ऐसा की माँ है ना सब संभाल लेगी।

एक बार आईये सब मिलकर यह प्रण करे की माँ को माँ ही रहने दे इसकी ममता की शुद्धता में कोई कमी ना हो।

Jai Hind