बुद्ध पूर्णिमा….एक संपूर्ण डिजाईन मानव को मानवता के माला में पिरोने की
आईये जाने कैसे हैं भगवान बुद्ध….. धर्मक्रांती के डिज़ाइनर - उनकी जीवनी, बौद्ध धर्म की उपयोगिता और संदेश ___ डैड थिंक लैब्स के साथ
केवल धर्म नहीं - ‘बौद्ध धर्म’ अपितु यह एक प्राकृतिक डिज़ाइन प्रक्रिया है ,जो एक जीवंत आत्मा को परमात्मा से परिचय और मिलने का मार्ग भी प्रसस्त करता है ….
बुद्ध पूर्णिमा की महत्ता ….
‘बुद्ध जयंती’ वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। धीरे धीरे यह बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के अलावा मानवता के लिए एक प्रमुख त्यौहार बन गया है। मान्यताओं के आधार पर पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ‘बुद्धत्व’ की प्राप्ति हुई थी। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया।
आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य के माध्यम से इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र, अन्न दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होने की आशा होती है |
इतिहास गवाह है; महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती एवं उनका लोकहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी, सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदैशिक होता है| उनका जीवन एक प्रेरणाश्रोत बन कर युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता रहेगा। एक प्रकाशस्तंभ के स्वर्णिम प्रतीक, गौतम बुद्ध हमारे जीवन के उन मूल्यों के रचईता हैं जिनको पाने के लिए लोगों को बार बार जन्म लेना पड़ेगा
बुद्ध पूर्णिमा….मानव को मानवता रूपी माला में पिरोने की एक आध्यात्मिक एवं स्वयं संयोजित डिज़ाइन प्रक्रिया
संसार अपने आप में प्रकृति का दिया हुआ एक स्वर्ग है, बस जरुरत है तो मानव के मानवता, करुणा, प्रेम , शांति, संवेदना और ज्ञान से ओत्प्रेत हो जाने की | प्रकृति ने इस संसार में असंख्य जीवों को बनाया और उस सर्वशक्तिमान ने उसमे चेतना डालते हुए एक नया रूप देकर सबके सह मौजूदगी के लिए श्रृष्टि की रचनात्मक व्यवस्था को डिज़ाइन किया |
समाज कल्याण के भाव से प्रेरित महात्मा बुद्ध ने संन्यासी बनकर भी अपने आप को आत्मा और परमात्मा के निरर्थक विवादों से दूर रखा। उनके उपदेश मानव के लिए दुःख एवं पीड़ा से मुक्ति के माध्यम बनते हुए सामाजिक एवं सांसारिक समस्याओं के समाधान के प्रेरक बने| उनकी सादगी, जीवन को सुन्दर बनाने एवं माननीय मूल्यों को लोक-चित्त में संचारित करने में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। यही कारण है कि उनकी बात लोगों की समझ में सहज रूप से ही आने लगी जब महात्मा बुद्ध ने मध्यममार्ग अपनाते हुए अहिंसा युक्त दस शीलों का प्रचार किया | उन्होंने पुरोहितवाद पर करारा प्रहार किया और व्यक्ति के महत्त्व को प्रतिष्ठित किया | उनका मानना था कि मनुष्य यदि अपनी तृष्णाओं पर विजय प्राप्त कर ले तो वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है| उनकी मान्यताओं पर गौर किया जाए तो एक विशिष्ट एवं रचनात्मक डिजाईन प्रणाली का भाव नज़र आयेगा |
जिस प्रकार डिजाईन मानव के किसी भी समस्याओं को हल करके आसान बनाता है, ठीक वैसे हीं ,बौद्ध दर्शन भी हमारे पूरे जीवन और जीवन की विसंगतियों को सरल बनाता है I अगर आज सिर्फ मानवता को डिज़ाइन के अस्तित्व के मूल्यों के आधार पर व्यवस्थित किया जाये तो पूरे श्रृष्टि को नुकसान पहुंचा जाने वाली बुराईयाँ दूर हो जायेंगी I
चेतन और अचेतन मन के बीच की दूरी और उसका ज्ञान हो जाये तो विश्व का कल्याण हो जायेगा
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया साथ ही काफी कुशलता से बौद्ध भिक्षुओं को संगठित किया और लोकतांत्रिक रूप में उनमें एकता की भावना का विकास किया। इस धर्म का अहिंसा एवं करुणा का सिद्धांत इतने प्रभावशाली थे , कि सम्राट अशोक ने दो वर्ष बाद इससे प्रभावित होकर बौद्ध मत को स्वीकार किया और युद्धों पर रोक लगा दी। इस प्रकार बौद्ध मत देश की सीमाएँ लाँघ कर विश्व के कोने-कोने तक अपनी ज्योति फैलाने लगा। आज भी इस धर्म की मानवतावादी, बुद्धिवादी और जनवादी परिकल्पनाओं को नकारा नहीं जा सकता और इनके माध्यम से भेद भावों से भरी व्यवस्था पर ज़ोरदार प्रहार किया जा सकता है। यही धर्म आज भी दुःखी, पीड़ित एवं अशांत मानवता को शांति प्रदान कर सकता है। ऊँच-नीच, भेदभाव, जातिवाद पर प्रहार करते हुए यह लोगों के मन में धार्मिक एकता का विकास कर रहा है। विश्व शांति एवं परस्पर भाईचारे का वातावरण निर्मित करके कला, साहित्य और संस्कृति के विकास के मार्ग को प्रशस्त करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
खूबसूरत और वैश्विक समाज की डिज़ाइनिंग की परिकल्पना जहाँ सभी एक दूसरे से प्रेम और भाईचारे के बंधन से जुड़े हों I
वास्तव में देखा जाए तो राज-शासन और धर्म-शासन दोनों का ही मुख्य उद्देश्य जनता को सन्मार्ग पर ले जाना है। परन्तु राज-शासन के अधिनायक स्वयं मोहमाया ग्रस्त प्राणी होते हैं, अतः वे समाज सुधार के कार्य में पूर्णतया सफल नहीं हो पाते। भला, जो जिस चीज को अपने हृदयतल में से नहीं मिटा सकता, वह दूसरे हजारों हृदयों से उसे कैसे मिटा सकता है? राज-शासन की आधारशिला प्रेम, स्नेह एवं सद्भाव की भूमि पर नहीं रखी जाती है, वह रखी जाती है, प्रायः भय, आतंक और दमन की नींव पर। यही कारण है कि राज-शासन प्रजा में न्याय, नीति और शांति की रक्षा करता हुआ भी अधिक स्थायी व्यवस्था कायम नहीं कर सकता। जबकि धर्म-शासन परस्पर के प्रेम और सद्भाव पर कायम होता है, फलतः वह सत्य-पथ प्रदर्शन के द्वारा मूलतः समाज का हृदय परिवर्तन करता है और सब ओर से पापाचार को हटाकर स्थायी न्याय, नीति तथा शांति की स्थापना करता है।
बुद्ध अन्ततोगत्वा इसी निर्णय पर पहुंचे कि भारत का यह दुःसाध्य रोग साधारण राजनीतिक हलचलों से दूर होने वाला नहीं है। इसके लिए तो सारा जीवन ही उत्सर्ग करना पड़ेगा, क्षुद्र परिवार का मोह छोड़ कर ‘विश्व-परिवार’ का आदर्श अपनाना होगा। राजकीय वेशभूषा से सुसज्जित होकर साधारण जनता में घुला-मिला नहीं जा सकता। वहां तक पहुंचने के लिए तो ऐच्छिक लघुत्व स्वीकार करना होगा, अर्थात् भिक्षुत्व स्वीकार करना होगा। ताकि लोगो की आकांक्षाओं को समझते हुए एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जा सके, जहाँ समानता, दया , प्रेम और सद्भाव हो।
मानवता जो की डिज़ाइनिंग का सबसे बेहतरीन पाठ है महात्मा बुद्ध से सीखने को I
मानवता को बुद्ध की सबसे बड़ी देन है भेदभाव को समाप्त करना। मानवता ही मानव होने का सबसे बड़ा प्रमाण है लेकिन आज भी बहुत सरे लोग अज्ञानता वश या अभिमान में अपने आप को सरलता से जटिलता की तरफ धकेल रहे हैं I यह एक विडम्बना ही है कि बुद्ध की इस धरती पर आज तक छूआछूत, भेदभाव किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। उस समय तो समाज छूआछूत के कारण अलग-अलग वर्गों में विभाजित था। बौद्ध धर्म ने सबको समान मान कर आपसी एकता की बात की तो बड़ी संख्या में लोग बौद्ध मत के अनुयायी बनने लगे। कुछ दशक पूर्व डाक्टर भीमराव आम्बेडकर ने भारी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध मत को अंगीकार किया ताकि हिन्दू समाज में उन्हें बराबरी का स्थान प्राप्त हो सके। बौद्ध मत के समानता के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप देना आज भी बहुत आवश्यक है। मूलतः बौद्ध मत हिन्दू धर्म के अनुरूप ही रहा और हिन्दू धर्म के भीतर ही रह कर महात्मा बुद्ध ने एक क्रांतिकारी और सुधारवादी आन्दोलन चलाया। भगवान बुद्ध ने कहा की अगर हम मानवता के इस संरचना को समझ ले और इसमें अमल कर लें तो समस्त विश्व का कल्याण हो जायेगा ।
डैड थिंक लैब्स आज इस पावन दिवस पर समस्त जीव-मात्र को ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट संरचना मानते हुए इसे मानवता के लिए सबसे बड़ा उपहार बता रहा है साथ ही यह भी कहना चाह रहा है की यह वास्तविकता में सबसे बड़ा डिज़ाइन है ।
एक ऐसा विश्व जहाँ हर मानव अपने शरीर , मन और आत्मा से एक हो उसपर उनका नियंत्रण हो ।
जब एक सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध तक की यात्रा मानव मन पर विजय प्राप्त कर के पूरी की जा सकती है तो फिर हम आप भी उनके बताए नियमों और सिद्धांतों को पाकर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं ।बुद्ध का लोगों तक जाने तक की यात्रा आसान नहीं थी ,अपने जीवन के सारे अनुभवों को बांटने, और कठोर तप करने से पहले स्वयं को अकेला बनाया ,खुद को तपा कर जीवन का सच जाना I उन्होंने यह संदेश दिया कि अगर हमारे भीतर का संसार स्वच्छ होगा तभी हम अपने आसपास भी सफाई रख पाएंगे , बुरा ना देखना, ना सुनना , ना बोलना यही ख़ालीपन का सन्देश सुख, शांति, समाधी का मार्ग है I अपने दीपक स्वयं बनने की बात और सबसे पहले वर्तमान में जीने की बात कही क्योंकि अगर मानव मन सुख-दुःख, हर्ष-विषाद से घीरे रहना, कल की चिंता में झुलसना, तनाव का भार ढ़ोना होगा तो ऐसी स्थिति में भला मन कब कैसे शांत हो सकता है ? ना अतीत की स्मृति ना भविष्य की चिंता यही मूल मंत्र है I आज जरुरत है, उन्नत एवं संतुलित समाज निर्माण के लिए महात्मा के उपदेशो के जीवन में ढालने की , ऐसा करके ही समाज को संतुलित बना सकेंगे I बुद्ध को केवल उपदेशो तक ही सिमित न रखे बल्कि बुद्ध को जीवन का हिस्सा बनाये अपना आईना बनाये जिसमे देखकर हर इंसान कहे की बुद्ध ही सार्थक जीवन का सबसे बड़ा उदाहरण है I
आईये जाने कैसे हैं भगवान बुद्ध….. धर्मक्रांती के डिज़ाइनर - उनकी जीवनी, बौद्ध धर्म की उपयोगिता और संदेश ___ डैड थिंक लैब्स के साथ
केवल धर्म नहीं - ‘बौद्ध धर्म’ अपितु यह एक प्राकृतिक डिज़ाइन प्रक्रिया है ,जो एक जीवंत आत्मा को परमात्मा से परिचय और मिलने का मार्ग भी प्रसस्त करता है ….
बुद्ध पूर्णिमा की महत्ता ….
‘बुद्ध जयंती’ वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। धीरे धीरे यह बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के अलावा मानवता के लिए एक प्रमुख त्यौहार बन गया है। मान्यताओं के आधार पर पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ‘बुद्धत्व’ की प्राप्ति हुई थी। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया।
आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य के माध्यम से इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र, अन्न दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होने की आशा होती है |
इतिहास गवाह है; महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती एवं उनका लोकहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी, सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदैशिक होता है| उनका जीवन एक प्रेरणाश्रोत बन कर युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता रहेगा। एक प्रकाशस्तंभ के स्वर्णिम प्रतीक, गौतम बुद्ध हमारे जीवन के उन मूल्यों के रचईता हैं जिनको पाने के लिए लोगों को बार बार जन्म लेना पड़ेगा
बुद्ध पूर्णिमा….मानव को मानवता रूपी माला में पिरोने की एक आध्यात्मिक एवं स्वयं संयोजित डिज़ाइन प्रक्रिया
चेतन और अचेतन मन के बीच की दूरी और उसका ज्ञान हो जाये तो विश्व का कल्याण हो जायेगा
खूबसूरत और वैश्विक समाज की डिज़ाइनिंग की परिकल्पना जहाँ सभी एक दूसरे से प्रेम और भाईचारे के बंधन से जुड़े हों I
वास्तव में देखा जाए तो राज-शासन और धर्म-शासन दोनों का ही मुख्य उद्देश्य जनता को सन्मार्ग पर ले जाना है। परन्तु राज-शासन के अधिनायक स्वयं मोहमाया ग्रस्त प्राणी होते हैं, अतः वे समाज सुधार के कार्य में पूर्णतया सफल नहीं हो पाते। भला, जो जिस चीज को अपने हृदयतल में से नहीं मिटा सकता, वह दूसरे हजारों हृदयों से उसे कैसे मिटा सकता है? राज-शासन की आधारशिला प्रेम, स्नेह एवं सद्भाव की भूमि पर नहीं रखी जाती है, वह रखी जाती है, प्रायः भय, आतंक और दमन की नींव पर। यही कारण है कि राज-शासन प्रजा में न्याय, नीति और शांति की रक्षा करता हुआ भी अधिक स्थायी व्यवस्था कायम नहीं कर सकता। जबकि धर्म-शासन परस्पर के प्रेम और सद्भाव पर कायम होता है, फलतः वह सत्य-पथ प्रदर्शन के द्वारा मूलतः समाज का हृदय परिवर्तन करता है और सब ओर से पापाचार को हटाकर स्थायी न्याय, नीति तथा शांति की स्थापना करता है।
बुद्ध अन्ततोगत्वा इसी निर्णय पर पहुंचे कि भारत का यह दुःसाध्य रोग साधारण राजनीतिक हलचलों से दूर होने वाला नहीं है। इसके लिए तो सारा जीवन ही उत्सर्ग करना पड़ेगा, क्षुद्र परिवार का मोह छोड़ कर ‘विश्व-परिवार’ का आदर्श अपनाना होगा। राजकीय वेशभूषा से सुसज्जित होकर साधारण जनता में घुला-मिला नहीं जा सकता। वहां तक पहुंचने के लिए तो ऐच्छिक लघुत्व स्वीकार करना होगा, अर्थात् भिक्षुत्व स्वीकार करना होगा। ताकि लोगो की आकांक्षाओं को समझते हुए एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जा सके, जहाँ समानता, दया , प्रेम और सद्भाव हो।
मानवता जो की डिज़ाइनिंग का सबसे बेहतरीन पाठ है महात्मा बुद्ध से सीखने को I
मानवता को बुद्ध की सबसे बड़ी देन है भेदभाव को समाप्त करना। मानवता ही मानव होने का सबसे बड़ा प्रमाण है लेकिन आज भी बहुत सरे लोग अज्ञानता वश या अभिमान में अपने आप को सरलता से जटिलता की तरफ धकेल रहे हैं I यह एक विडम्बना ही है कि बुद्ध की इस धरती पर आज तक छूआछूत, भेदभाव किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। उस समय तो समाज छूआछूत के कारण अलग-अलग वर्गों में विभाजित था। बौद्ध धर्म ने सबको समान मान कर आपसी एकता की बात की तो बड़ी संख्या में लोग बौद्ध मत के अनुयायी बनने लगे। कुछ दशक पूर्व डाक्टर भीमराव आम्बेडकर ने भारी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध मत को अंगीकार किया ताकि हिन्दू समाज में उन्हें बराबरी का स्थान प्राप्त हो सके। बौद्ध मत के समानता के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप देना आज भी बहुत आवश्यक है। मूलतः बौद्ध मत हिन्दू धर्म के अनुरूप ही रहा और हिन्दू धर्म के भीतर ही रह कर महात्मा बुद्ध ने एक क्रांतिकारी और सुधारवादी आन्दोलन चलाया। भगवान बुद्ध ने कहा की अगर हम मानवता के इस संरचना को समझ ले और इसमें अमल कर लें तो समस्त विश्व का कल्याण हो जायेगा ।
डैड थिंक लैब्स आज इस पावन दिवस पर समस्त जीव-मात्र को ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट संरचना मानते हुए इसे मानवता के लिए सबसे बड़ा उपहार बता रहा है साथ ही यह भी कहना चाह रहा है की यह वास्तविकता में सबसे बड़ा डिज़ाइन है ।
एक ऐसा विश्व जहाँ हर मानव अपने शरीर , मन और आत्मा से एक हो उसपर उनका नियंत्रण हो ।
जब एक सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध तक की यात्रा मानव मन पर विजय प्राप्त कर के पूरी की जा सकती है तो फिर हम आप भी उनके बताए नियमों और सिद्धांतों को पाकर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं ।बुद्ध का लोगों तक जाने तक की यात्रा आसान नहीं थी ,अपने जीवन के सारे अनुभवों को बांटने, और कठोर तप करने से पहले स्वयं को अकेला बनाया ,खुद को तपा कर जीवन का सच जाना I उन्होंने यह संदेश दिया कि अगर हमारे भीतर का संसार स्वच्छ होगा तभी हम अपने आसपास भी सफाई रख पाएंगे , बुरा ना देखना, ना सुनना , ना बोलना यही ख़ालीपन का सन्देश सुख, शांति, समाधी का मार्ग है I अपने दीपक स्वयं बनने की बात और सबसे पहले वर्तमान में जीने की बात कही क्योंकि अगर मानव मन सुख-दुःख, हर्ष-विषाद से घीरे रहना, कल की चिंता में झुलसना, तनाव का भार ढ़ोना होगा तो ऐसी स्थिति में भला मन कब कैसे शांत हो सकता है ? ना अतीत की स्मृति ना भविष्य की चिंता यही मूल मंत्र है I आज जरुरत है, उन्नत एवं संतुलित समाज निर्माण के लिए महात्मा के उपदेशो के जीवन में ढालने की , ऐसा करके ही समाज को संतुलित बना सकेंगे I बुद्ध को केवल उपदेशो तक ही सिमित न रखे बल्कि बुद्ध को जीवन का हिस्सा बनाये अपना आईना बनाये जिसमे देखकर हर इंसान कहे की बुद्ध ही सार्थक जीवन का सबसे बड़ा उदाहरण है I